सूफी काव्यधारा या प्रेमाश्रयी शाखाSufi poetry or romantic branch
हिन्दी साहित्य के स्वर्ण युग भक्तिकाल की निर्गुणभक्ति धारा के अंतर्गत सन्त काव्य व सूफी काव्य दो धाराएं हैं। सूफी काव्य धारा को प्रेममार्गी शाखा , प्रेमाश्रयी शाखा , प्रेमाख्यान काव्य परम्परा , रोमांसिक कथा काव्य परम्परा आदि नामों से भी जाना जाता है। इस शाखा में प्रेमतत्व की प्रधानता है। यह प्रेम भावना भारतीय प्रेम से थोड़ी अलग है। यह स्वच्छंद प्रेम है जिसे अंग्रेजी में रोमांस कहा जाता है । यह मर्यादावादी दाम्पत्य प्रेम से हटकर है। स्वच्छंद प्रेम समाज की मान्यताओं को स्वीकार नही करता । हिन्दी के मध्यकालीन ग्रन्थों में इसी प्रेम का चित्रण किया गया है।
आचार्य शुक्ल इन प्रेमाख्यानों पर फ़ारसी मसनवियों का प्रभाव मानते हैं। परंतु इस प्रकार के प्रेम का चित्रण प्राचीन भारतीय साहित्य में भी प्रचुर मात्रा में किया गया है। ऋग्वेद में पुरुरवा-उर्वशी आख्यान , महाभारत में नल-दमयंती आख्यान , राधा-कृष्ण आख्यान आदि भी स्वच्छंद प्रेम की श्रेणी में आते हैं। यही परम्परा संस्कृत के बाद के ग्रन्थों में भी उपलब्ध होती है । इसीलिए सूफी प्रेमाख्यानों को पूर्णतः विदेशी प्रभाव से युक्त मानना उचित नही है। यह प्रेमाख्यान परम्परा महाभारत से होकर आधुनिक भाषओं तक पहुंची । कुछ पाश्चत्य विद्वान बेनफी ,किलर व हर्टल का मानना है कि भारतीय प्रेमाख्यानों की एक शाखा सिकन्दर के साथ यूनान, इटली, जर्मनी, स्पेन व इटली पहुंची और इसी ने रोमांटिसिज्म की आधारभूमि तैयार की ।
चबूतरे का नाम सुफ्फा चबूतरा है इस पर बैठने वाले फकीरों को सूफी कहा जाता है।
कुछ विद्वानों के मत में यह शब्द सफा से बना है जिसका
अर्थ है- शुद्ध या पवित्र ।
कुछ इसका सम्बन्ध सोफिया से जोड़ते हैं जिसका अर्थ है-
ज्ञान ।
सर्वाधिक मान्य मत- सूफी शब्द सूफ से बना है जिसका
अर्थ है ऊन । सूफी लोग सफेद ऊन से बने चोगे पहनते थे तथा इनका आचरण पवित्र होता था ।
भारत में प्रमुख सूफी सिलसिले व संस्थापक
आईने अकबरी में 14 सम्प्रदायों या सिलसिलों का उल्लेख है जिनमें से कुछ प्रमुख हैं-
कादरी- सैयद अबुल कादरी जीलानी। भारत में संस्थापक-मुहम्मद गौस या अब्दुल कादिर।
चिश्ती- ख्वाजा अब्दुल चिश्ती। भारत में संस्थापक- ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ।
सुहरावर्दी- शेख सहाबुद्दीन उमर सुहरावर्दी । भारत में संस्थापक- बहाउद्दीन जकरिया ।
नक्सबन्दी- ख्वाजा उबेदुल्ला । भारत में संस्थापक- अहमद सरहिन्दी
फिरदौस- सैफुद्दीन बखरजी
सूफी मत में ईश्वर को निराकार व सर्व्यापी मन गया है। ईश्वर का साक्षात्कार पीर या गुरु की सहायता से ही हो सकता है।
शरीयत(कर्मकाण्ड)- धर्मग्रंथों के विधान का पालन। हाल की दशा-नासूत।
सूफियों में मजार पूज्य है व तीर्थयात्रा की भी मान्यता है। सूफी साधना में इश्क मजाजी(लौकिक प्रेम) से इश्क हकीकी(अलौकिक प्रेम) को प्राप्त करने पर बल दिया गया है। इनकी मान्यता है कि हाल की दशा में पहुंच कर साधक बाह्य संसार को भूलकर एकमात्र अपनी प्रिया(ईश्वर) में लीन हो जाता है । सूफी मत में साधक की कल्पना पति रूप में व ईश्वर की कल्पना पत्नी रूप में कई गई है। जबकि भारतीय रहस्यवाद में ईश्वर को पति या प्रियतम व जीवात्मा को प्रेयसी या पत्नी के रूप में कल्पित किया गया है।
चितौड़ शरीर
अखरावट-
वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर का सिद्धांत निरूपण।
आखिरी कलाम-
कयामत का वर्णन।
कथा कनकावती
कथा कँवलावती
कथा मोहिनी
कथा नल-दमयंती
कथा रूपमंजरी
कथा कलन्दर
ग्रन्थ लै-लै मजनू
असाइत हंसावली 1370ई. राजकुमार हंसावली राजस्थानी हिंदी।
प्रेमाख्यानकों का नाम नायिका के नाम पर है।
लोकपक्ष व हिन्दू संस्कृति का चित्रण प्रायः सभी काव्यों में है।
आचार्य शुक्ल इन प्रेमाख्यानों पर फ़ारसी मसनवियों का प्रभाव मानते हैं। परंतु इस प्रकार के प्रेम का चित्रण प्राचीन भारतीय साहित्य में भी प्रचुर मात्रा में किया गया है। ऋग्वेद में पुरुरवा-उर्वशी आख्यान , महाभारत में नल-दमयंती आख्यान , राधा-कृष्ण आख्यान आदि भी स्वच्छंद प्रेम की श्रेणी में आते हैं। यही परम्परा संस्कृत के बाद के ग्रन्थों में भी उपलब्ध होती है । इसीलिए सूफी प्रेमाख्यानों को पूर्णतः विदेशी प्रभाव से युक्त मानना उचित नही है। यह प्रेमाख्यान परम्परा महाभारत से होकर आधुनिक भाषओं तक पहुंची । कुछ पाश्चत्य विद्वान बेनफी ,किलर व हर्टल का मानना है कि भारतीय प्रेमाख्यानों की एक शाखा सिकन्दर के साथ यूनान, इटली, जर्मनी, स्पेन व इटली पहुंची और इसी ने रोमांटिसिज्म की आधारभूमि तैयार की ।
सूफी शब्द की व्युत्पत्ति
मुसलमानों के पवित्र तीर्थ मदीना की मस्जिद के सामने वालेचबूतरे का नाम सुफ्फा चबूतरा है इस पर बैठने वाले फकीरों को सूफी कहा जाता है।
कुछ विद्वानों के मत में यह शब्द सफा से बना है जिसका
अर्थ है- शुद्ध या पवित्र ।
कुछ इसका सम्बन्ध सोफिया से जोड़ते हैं जिसका अर्थ है-
ज्ञान ।
सर्वाधिक मान्य मत- सूफी शब्द सूफ से बना है जिसका
अर्थ है ऊन । सूफी लोग सफेद ऊन से बने चोगे पहनते थे तथा इनका आचरण पवित्र होता था ।
सूफी मत का स्रोत
सूफी मत इस्लाम धर्म का एक अंग है। सूफी मत इस्लाम धर्म में शरीयत(कर्मकाण्ड) की प्रतिक्रिया का परिणाम है जैसे हिन्दू धर्म में वैदिक कर्मकाण्ड की प्रतिक्रिया में वैष्णव मत। सूफी मत के मूल में प्रेम है। इसमें इश्क हकीकी व इश्क मिजाजी की भावना निहित है। इस्लाम की कट्टरता का आभाव है।सूफियों ने लौकिक प्रेम के द्वारा अलौकिक प्रेम को प्राप्त करने पर जोर दिया है। सूफी मत का आदि स्रोत शामी जातियां हैं।सूफी मत का भारत में प्रचार-प्रसार
सूफी मत का भारत मे प्रवेश 9वीं-10वीं शताब्दी में हुआ। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने इसे लोकप्रिय बनाया इसका प्रचार-प्रसार किया। सूफी दो भागों में विभक्त थे- शरा व बेशरा भारत में अधिकांश सूफी सम्प्रदाय बेशरा परम्परा से जुड़े हैं।भारत में प्रमुख सूफी सिलसिले व संस्थापक
आईने अकबरी में 14 सम्प्रदायों या सिलसिलों का उल्लेख है जिनमें से कुछ प्रमुख हैं-
कादरी- सैयद अबुल कादरी जीलानी। भारत में संस्थापक-मुहम्मद गौस या अब्दुल कादिर।
चिश्ती- ख्वाजा अब्दुल चिश्ती। भारत में संस्थापक- ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ।
सुहरावर्दी- शेख सहाबुद्दीन उमर सुहरावर्दी । भारत में संस्थापक- बहाउद्दीन जकरिया ।
नक्सबन्दी- ख्वाजा उबेदुल्ला । भारत में संस्थापक- अहमद सरहिन्दी
फिरदौस- सैफुद्दीन बखरजी
सूफी मत की मान्यताएं
सूफी मत में ईश्वर को निराकार व सर्व्यापी मन गया है। ईश्वर का साक्षात्कार पीर या गुरु की सहायता से ही हो सकता है।
सूफी मत में साधना के सात सोपान माने गए हैं- इश्क(प्रेम), जहद(संघर्ष), स्वारिफ(वैराग्य), वल्द(भावातिरेक), हकीक(सत्य की अनुभूति), वस्ल(परम् सत्ता की स्थिति), फना(अहं का पूर्ण विलय)
ईश्वरीय साधना के चार मुकाम हैं-
शरीयत(कर्मकाण्ड)- धर्मग्रंथों के विधान का पालन। हाल की दशा-नासूत।
तरीकत(उपासना)- बाहरी आकर्षणों का त्याग । हाल की दशा- मलकत।
मारिफ़त(ज्ञान)- सम्यक दृष्टि की प्राप्ति। हाल की दशा- जबरुत
हकीकत(परमतत्व)- सिद्धावस्था की प्राप्ति । हाल की दशा- लाहूत।
सूफियों में मजार पूज्य है व तीर्थयात्रा की भी मान्यता है। सूफी साधना में इश्क मजाजी(लौकिक प्रेम) से इश्क हकीकी(अलौकिक प्रेम) को प्राप्त करने पर बल दिया गया है। इनकी मान्यता है कि हाल की दशा में पहुंच कर साधक बाह्य संसार को भूलकर एकमात्र अपनी प्रिया(ईश्वर) में लीन हो जाता है । सूफी मत में साधक की कल्पना पति रूप में व ईश्वर की कल्पना पत्नी रूप में कई गई है। जबकि भारतीय रहस्यवाद में ईश्वर को पति या प्रियतम व जीवात्मा को प्रेयसी या पत्नी के रूप में कल्पित किया गया है।
प्रमुख सूफी कवि एवं रचनाएं
मुल्ला दाऊद
चंदायन(1379ई.)-
नायक लोर व नायिका चन्दा के उन्मुक्त प्रेम का चित्रण है। डॉ. माताप्रसाद गुप्त ने लोरकथा नाम से अभिहित किया है। भाषा अवधि व प्राकृत अपभ्रंश की कड़वक शैली में रचना की गई है। (कड़वक शैली- पांच अर्द्धालियों के बाद एक दोहा )
कुतुबन
मृगावती(1503ई.)-
नायक एक राजकुमार व नायिका मृगावती की प्रेमकथा है। भाषा अवधि व कड़वक शैली में रचित इस प्रेमाख्यान को आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सूफी प्रेमाख्यानक काव्य परम्परा का पहला ग्रन्थ स्वीकार करते हैं , किन्तु डॉ.नगेन्द्र हंसावली को पहली रचना मानते हैंमंझन
मधुमालती(1545ई.)-
नायक मनोहर एवं नायिका मधुमालती के एकनिष्ठ प्रेम का वर्णन है। भाषा अवधि व दोहा-चौपई शैली में रचित इस ग्रन्थ का मूल उद्देश्य उदात्त प्रेम का चित्रण करना है।जायसी
सूफी काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि । पद्मावत इनकी व सूफी काव्यधारा की सर्वश्रेष्ठ रचना है। इन्होंने पद्मावत के अलावा दो अन्य ग्रन्थ अखरावट व आखिरी कलाम की रचना की।पद्मावत-
अवधि भाषा में रचित हिंदी का प्रमुख महाकाव्य है । नायक राजा रत्नसेन व नायिका पद्मावती जैसे ऐतिहासिक पात्र हैं। इसकी कथावस्तु का पूर्वार्द्ध कल्पित व उत्तरार्द्ध ऐतिहासिक मन जाता है। पद्मावत के विभिन्न पात्रों में रूपकत्व का आरोप भी किया गया है। पद्मावत के अंत में दिये जिस कड़वक में पात्रों को आध्यात्मिक अर्थ दिए गए हैं उसे कुछ विद्वान प्रक्षिप्त मानते हैं। जायसी के अनुसार प्रतिक निम्न हैं-
चितौड़ शरीर
राजा रत्नसेन मन
सिंहलद्वीप हृदय
पद्मावती बुद्धि
राघव चेतन शैतान
अलाउद्दीन माया
नागमती संसार
हिरामन तोता गुरु
वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर का सिद्धांत निरूपण।
आखिरी कलाम-
कयामत का वर्णन।
जान कवि(1612-1664ई.)
इन्होंने 78 काव्य ग्रन्थों की रचना की जिनमें से 25 प्रेमाख्यानक ग्रन्थ है। इनके काव्य ग्रन्थों की भाषा राजस्थानी प्रभावित ब्रजभाषा व शैली दोहा-चौपई के साथ कवित्त-सवैया शैली है।प्रमुख कृतियां
कथा रत्नावलीकथा कनकावती
कथा कँवलावती
कथा मोहिनी
कथा नल-दमयंती
कथा रूपमंजरी
कथा कलन्दर
ग्रन्थ लै-लै मजनू
अन्य कवि एवं रचनाएं
कवि कृति रचनाकाल नायिक नायिका भाषा
असाइत हंसावली 1370ई. राजकुमार हंसावली राजस्थानी हिंदी।
दामोदर कवि लखमसेन-पद्मावती कथा 1459ई. लक्ष्मण सेन पद्मावती राजस्थानी।
कुशललाभ ढोला मारू रा दूहा 1473ई. ढोला मारवणी राजस्थानी।
माधवनल-कामकन्दला चौपाई 1556ई. माधव कामकन्दला
ईश्वर दास सत्यवती कथा 1501ई. ऋतुपर्ण सत्यवती अवधि।
गणपति माधवनल-कामकन्दला 1527ई. माधव कामकन्दला राजस्थानी।
नन्ददास रूपमंजरी 1568ई. कृष्ण रूपमंजरी ब्रजभाषा
आलम माधवनल-कामकन्दला 1584ई. माधव कामकन्दला अवधि
नारायण दास छिताइ वार्ता 1590ई. ढोल छिताइ ब्रज
उसमान चित्रावली 1613ई. सुजान चित्रावली अवधि
पुहकर रसरतन 1618ई. सोम रम्भा अवधि
शेखनवी ज्ञानदीप 1619ई. ज्ञानदीप देवयानी अवधि
कासिमशाह हँसजवाहिर - हंस जवाहिर अवधि
सूफी काव्य की प्रवृतियां
प्रेम की प्रधानता
सूफी कवि प्रेम की सर्वोच्चता स्वीकार करते हैं। प्रेम ही इनकी आध्यात्मिक साधना का केंद्र है। प्रेम में सूफी कवियों ने ऊंच-नीच,जाती,वर्ग व वर्ण के भेद को अस्वीकार कर विश्व धर्म को स्थापित किया।प्रकृति का रागात्मक चित्रण
इन्होंने प्रकृति का चित्रण उद्दीपन रूप में किया है।सूफियों ने प्रकृति को चेतन सत्ता के रूप में चित्रित किया है।खण्डन-मण्डन का अभाव
सूफियों ने सन्तों की तरह खण्डन-मण्डन की विध्वंसात्मक शैली को नही अपनाया है। इन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा प्रेम के सार्वभोमिक स्वरूप की स्थापना की है।प्रतिकात्मता
सूफी काव्य में प्रतिकात्मता कई भरमार है।अतः ये रूपक आख्यान काव्यों की श्रेणी में आते हैं। सूफियों के यहां आत्मा पुरूष व परमात्मा स्त्री है , जो कि सन्तों के विपरीत है।प्रबंधात्मकता
सूफियों ने अपने काव्य की रचना प्रबन्ध शैली में की है। नायिका प्रधान महाकाव्यों की सर्जना हुई है।भाव एवं रस व्यंजना
सूफी कवियों का मूल प्रतिपाद्य प्रेम है, अतः इनकी रचनाओं में श्रंगार रस की प्रधानता है। श्रृंगार के दोनों पक्षों वियोग एवं संयोग का प्रभापूर्ण चित्रण किया है।वस्तु वर्णन
इनके काव्य ग्रन्थों में वस्तु वर्णन की प्रधानता है।ये कवि मूल कथा के साथ-साथ वस्तु, दृश्य, एवं घटना का वर्णन अतिश्योक्तिपूर्ण शैली में करने में सिद्धहस्त थे।भाषा एवं अलंकार योजना
सूफी कवियों ने अपनी रचनाओं में अवधि भाषा का प्रयोग किया है।जायसी की अवधि ठेठ ग्रामीण अवधि है। इन्होंने उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा और अतिश्योक्ति जैसे अलंकारों का प्रयोग किया है।इनकी अलंकार योजना में भाव व्यंजकता अधिक है, चमत्कार प्रदर्शन कम, यही कारण है कि इनके काव्य में शब्दालंकारों का प्रयोग बहुत कम हुआ है।अन्य
अधिकांश कवि मुसलमान हैं जिन्होंने मसनवी शैली का प्रयोग किया है।प्रेमाख्यानकों का नाम नायिका के नाम पर है।
लोकपक्ष व हिन्दू संस्कृति का चित्रण प्रायः सभी काव्यों में है।