आधुनिक काल-द्विवेदी युग या जागरण सुधार कालDwivedi era or Jagaran reform period
हिंदी साहित्य के आधुनिक काल का द्वितीय चरण द्विवेदी युग या जागरण सुधार काल के नाम से जाना जाता है।द्विवेदी युग का नामकरण आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर किया गया है। इसका कालक्रम 1903-1918ई. रहा। उन्नीसवीं शती के अंत तक भारतेन्दुकालीन समस्यापूर्ति व नीरस तुकबंदियों से लोग विमुख होने लगे तथा लम्बे समय से काव्य की भाषा रही ब्रज का आकर्षण भी अब लुप्त होने लगा और उसका स्थान खड़ी बोली हिन्दी ने ले लिया। आचार्य शुक्ल इस काल को हिंदी काव्य की नई धारा कहते हैं।नई धारा से अभिप्राय रीतिकालीन श्रृंगारिक,प्रवृतियों,अभिव्यंजना, रूढ़ियों, एवं संस्कृत काव्यशास्त्र के अनुकरण पर आधारित रीतिबद्ध शास्त्रीय रचना को छोड़कर नयी अभिव्यक्ति और नयी अभिव्यंजना शेली के ग्रहण से है।
हिंदी साहित्य में सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन व आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी का उसका सम्पादक बनना एक महत्वपूर्ण घटना है सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन 1900 ई. में प्रारंभ हुआ तथा 1903ई. महावीरप्रसाद द्विवेदी इसके सम्पादक बने। द्विवेदी जी ने इस पत्रिका के द्वारा भाषा व साहित्य दोनों का परिष्कार किया । इसके माध्यम से ज्ञान का प्रचार हुआ,नये लेखक व कवि प्रकाश में आए, भाषा संस्कार,समाज सुधार, देश प्रेम,चरित्र निर्माण की भावनाएं विकसित हुई।
मौलिक पद्य रचनाएँ
देवी स्तुति-शतक (1892 ई.)
कान्यकुब्जावलीव्रतम (1898 ई.)
समाचार पत्र सम्पादन स्तवः (1898 ई.)
नागरी (1900 ई.)
कान्यकुब्ज-अबला-विलाप (1907 ई.)
काव्य मंजूषा (1903 ई.)
सुमन (1923 ई.)
द्विवेदी काव्य-माला (1940 ई.)
कविता कलाप (1909 ई.)
पद्य (अनूदित)
विनय विनोद (1889 ई.)- भर्तृहरि के 'वैराग्यशतक' का दोहों में अनुवाद
विहार वाटिका (1890 ई.)- गीत गोविन्द का भावानुवाद
स्नेह माला (1890 ई.)- भर्तृहरि के 'शृंगार शतक' का दोहों में अनुवाद
श्री महिम्न स्तोत्र (1891 ई.)- संस्कृत के 'महिम्न स्तोत्र' का संस्कृत वृत्तों में अनुवाद
गंगा लहरी (1891 ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ की 'गंगालहरी' का सवैयों में अनुवाद
ऋतुतरंगिणी (1891 ई.)- कालिदास के 'ऋतुसंहार' का छायानुवाद
सोहागरात (अप्रकाशित)- बाइरन के 'ब्राइडल नाइट' का छायानुवाद
कुमारसम्भवसार (1902 ई.)- कालिदास के 'कुमारसम्भवम्' के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश
मौलिक गद्य रचनाएँ
नैषध चरित्र चर्चा (1899 ई.)
तरुणोपदेश (अप्रकाशित)
हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना (1901 ई.)
वैज्ञानिक कोश (1906ई.),
नाट्यशास्त्र (1912ई.)
विक्रमांकदेवचरितचर्चा (1907ई.)
हिन्दी भाषा की उत्पत्ति (1907ई.)
सम्पत्ति-शास्त्र (1907ई.)
कौटिल्य कुठार (1907ई.)
कालिदास की निरकुंशता (1912ई.)
वनिता-विलाप (1918ई.)
औद्यागिकी (1920ई.)
रसज्ञ रंजन (1920ई.)
कालिदास और उनकी कविता (1920ई.)
सुकवि संकीर्तन (1924ई.)
अतीत स्मृति (1924ई.)
साहित्य सन्दर्भ (1928ई.)
अदभुत आलाप (1924ई.)
महिलामोद (1925ई.)
आध्यात्मिकी (1928ई.)
वैचित्र्य चित्रण (1926ई.)
साहित्यालाप (1926ई.)
विज्ञ विनोद (1926ई.)
कोविद कीर्तन (1928ई.)
विदेशी विद्वान (1928ई.)
प्राचीन चिह्न (1929ई.)
चरित चर्या (1930ई.)
पुरावृत्त (1933ई.)
दृश्य दर्शन (1928ई.)
आलोचनांजलि (1928ई.)
चरित्र चित्रण (1929ई.)
पुरातत्त्व प्रसंग (1929ई.)
साहित्य सीकर (1930ई.)
विज्ञान वार्ता (1930ई.)
वाग्विलास (1930ई.)
संकलन (1931ई.)
विचार-विमर्श (1931ई.)
गद्य (अनूदित)
भामिनी-विलास (1891ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ के 'भामिनी विलास' का अनुवाद
अमृत लहरी (1896ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ के 'यमुना स्तोत्र' का भावानुवाद
बेकन-विचार-रत्नावली (1901ई.)- बेकन के प्रसिद्ध निबन्धों का अनुवाद
शिक्षा (1906ई.)- हर्बर्ट स्पेंसर के 'एजुकेशन' का अनुवाद
स्वाधीनता (1907ई.)- जॉन स्टुअर्ट मिल के 'ऑन लिबर्टी' का अनुवाद
जल चिकित्सा (1907ई.)- जर्मन लेखक लुई कोने की जर्मन पुस्तक के अंग्रेजी अनुवाद का अनुवाद
हिन्दी महाभारत (1908ई.)-'महाभारत' की कथा का हिन्दी रूपान्तर
रघुवंश (1912ई.)- कालिदास के 'रघुवंशम्' महाकाव्य का भाषानुवाद
वेणी-संहार (1913ई.)- संस्कृत कवि भट्टनारायण के 'वेणीसंहार' नाटक का अनुवाद
कुमार सम्भव (1915ई.)- कालिदास के 'कुमार सम्भव' का अनुवाद
मेघदूत (1917ई.)- कालिदास के 'मेघदूत' का अनुवाद
किरातार्जुनीय (1917ई.)- भारवि के 'किरातार्जुनीयम्' का अनुवाद
प्राचीन पण्डित और कवि (1918ई.)- अन्य भाषाओं के लेखों के आधार पर प्राचीन कवियों और पण्डितों का परिचय
आख्यायिका सप्तक (1927ई.)- अन्य भाषाओं की चुनी हुई सात आख्यायिकाओं का छायानुवाद।
श्रीधर पाठक (11 जनवरी 1858- 13 सितंबर 1928)
प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापति हुए और 'कविभूषण' की उपाधि से विभूषित भी हुए। हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी पर उनका समान अधिकार था।
इनकी रचनाये
मनोविनोद (भाग-1,2,3),
धन विनय (1900),
गुनवंत हेमंत (1900),
वनाष्टक (1912),
देहरादून (1915),
गोखले गुनाष्टक (1915)।
अन्य रचनाएँ हैं-
बाल भूगोल, जगत सचाई सार,
एकांतवासी योगी, काश्मीरसुषमा,
आराध्य शोकांजलि, जार्ज वंदना,
भक्ति विभा, श्री गोखले प्रशस्ति,
श्रीगोपिकागीत, भारतगीत,
तिलस्माती मुँदरी और
विभिन्न स्फुट निबंध तथा पत्रादि।
अनुवाद
श्रांत पथिक-"गोल्डस्मिथ के ट्रैवेलर का अनुवाद"
ऊजड़ग्राम(डेजर्टेज विलेज)
रामनरेश त्रिपाठी (4 मार्च, 1889 - 16 जनवरी, 1962)
कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी पर इन्होंने कलम चलाई। अपने 72 वर्ष के जीवन काल में इन्होंने लगभग सौ पुस्तकें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले यह हिंदी के प्रथम कवि हैं जिसे 'कविता कौमुदी' के नाम से जाना जाता है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और चुना।
कृतियाँ
मिलन (1918) 13दिनों में रचित
पथिक (1920) 21 दिनों में रचित
मानसी (1927) और
स्वप्न (1929) 15दिनों में रचित इसके लिए इन्हें हिन्दुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला।
पं. रामनरेश त्रिपाठी जी की अन्य प्रमुख कृतियां -
मुक्तक -
मारवाड़ी मनोरंजन, आर्य संगीत शतक,
कविता-विनोद, क्या होम रूल लोगे, मानसी।
काव्य:
मिलन,
पथिक,
स्वप्न।
कहानी :
तरकस, आखों देखी कहानियां,
स्वपनों के चित्र, नखशिख,
उन बच्चों का क्या हुआ..?
21 अन्य कहानियाँ।
उपन्यास :
वीरांगना, वीरबाला,
मारवाड़ी और पिशाचनी,
सुभद्रा और लक्ष्मी।
नाटक :
जयंत, प्रेमलोक,
वफ़ाती चाचा,
अजनबी, पैसा परमेश्वर,
बा और बापू,
कन्या का तपोवन।
व्यंग्य :
दिमाग़ी ऐयाशी,
स्वप्नों के चित्र।
अनुवाद :
इतना तो जानो (अटलु तो जाग्जो - गुजराती से),
कौन जागता है (गुजराती नाटक)।
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947)
हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे।ये दो बार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं। प्रिय प्रवास हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है और इसे मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
रचनाएँ
हरिऔध जी ने ठेठ हिंदी का ठाठ ,
अधखिला फूल ,
हिंदी भाषा और साहित्य का विकास
आदि ग्रंथों की भी रचना की,
किंतु मूलतः वे कवि ही थे उनके उल्लेखनीय ग्रंथ-
प्रिय प्रवास 1914 ई .
कवि सम्राट
वैदेही वनवास 1940 ई .
पारिजात 1937 ई .
रस-कलश 1940 ई .
चुभते चौपदे 1932 ई., चौखे चौपदे 1924 ई .
ठेठ हिंदी का ठाठ
अध खिला फूल
रुक्मिणी परिणय
हिंदी भाषा और साहित्य का विकास
बाल साहित्य
बाल विभव
बाल विलास
फूल पत्ते
चन्द्र खिलौना
खेल तमाशा
उपदेश कुसुम
बाल गीतावली
चाँद सितारे
पद्य प्रसून
जगन्नाथदास रत्नाकर (1866 - 21 जून 1932) आधुनिक युग के श्रेष्ठ ब्रजभाषा कवि थे।
रत्नाकर जी की रचनाएँ -
पद्य
हरिश्चंद्र (खंडकाव्य)
गंगावतरण 1923 (पुराख्यान काव्य),
उद्धवशतक (प्रबंध काव्य),
हिंडोला1894 (मुक्तक),
कलकाशी (मुक्तक)
समालोचनादर्श (पद्यनिबंध)
श्रृंगारलहरी, गंगालहरी,
विष्णुलहरी (मुक्तक),
रत्नाष्टक (मुक्तक),
वीराष्टक (मुक्तक),
प्रकीर्णक पद्यावली (मुक्तक संग्रह)।
गद्य
साहित्यिक लेख –
रोला छंद के लक्षण,
महाकवि बिहारीलाल की जीवनी,
बिहारी सतसई संबंधी साहित्य,
साहित्यिक ब्रजभाषा तथा उसके व्याकरण की सामग्री
बिहारी सतसई की टीकाएँ, बिहारी पर स्फुट लेख।
ऐतिहासिक लेख –
महाराज शिवाजी का एक नया पत्र,
शुगवंश का एक शिलालेख,
शुंग वंश का एक नया शिलालेख,
एक ऐतिहासिक पापाणाश्व की प्राप्ति,
एक प्राचीन मूर्ति, समुद्रगुप्त का पाषाणाश्व,
घनाक्षरी निय रत्नाकर, वर्ण, सवैया, छंद आदि।
संपादित रचनाएँ
सुधासागर (प्रथम भाग),
कविकुल कंठाभरण,
दीपप्रकाश, सुंदरश्रृंगार,
नृपशंमुकृत नखशिख,
हम्मीर हठ, रसिक विनोद,
समस्यापूर्ति (भाग 1), हिततरंगिणी,
केशवदासकृत नखशिख,
सुजानसागर,
बिहारी रत्नाकर, सूरसागर
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (3 अगस्त 1886 – 12 दिसम्बर 1964)
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। इनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी।सन 1954 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से गुप्त जी ने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है।'साकेत' इनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है।
कृतियाँ
महाकाव्य-
साकेत,
यशोधरा
खण्डकाव्य-
जयद्रथ वध, भारत-भारती,
पंचवटी, द्वापर,
सिद्धराज, नहुष,
अंजलि और अर्घ्य,
अजित, अर्जन और विसर्जन,
काबा और कर्बला, किसान,
कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर,
गुरुकुल , जय भारत,
युद्ध, झंकार , पृथ्वीपुत्र,
वक संहार , शकुंतला,
विश्व वेदना, राजा प्रजा,
विष्णुप्रिया, उर्मिला,
लीला , प्रदक्षिणा,
दिवोदास , भूमि-भाग
नाटक –
रंग में भंग , राजा-प्रजा,
वन वैभव , विकट भट ,
विरहिणी , वैतालिक,
शक्ति, सैरन्ध्री ,
स्वदेश संगीत, हिड़िम्बा ,
हिन्दू, चंद्रहास
मैथिलीशरण गुप्त ग्रन्थावली (मौलिक तथा अनूदित समग्र कृतियों का संकलन 12 खण्डों में,
काविताओं का संग्रह - उच्छवास
पत्रों का संग्रह - पत्रावली
रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974)
हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। ये आधुनिक युग के सर्व श्रेष्ठ वीर रस के कवि हैं।
काव्य
बारदोली-विजय संदेश (1928), प्रणभंग (1929)
रेणुका (1935), हुंकार (1938)
रसवन्ती (1939),द्वंद्वगीत (1940)
कुरूक्षेत्र (1946), धूप-छाँह (1947)
सामधेनी (1947), बापू (1947)
इतिहास के आँसू (1951),धूप और धुआँ (1951)
मिर्च का मज़ा (1951), रश्मिरथी (1952)
दिल्ली (1954),नीम के पत्ते (1954)
नील कुसुम (1955), सूरज का ब्याह (1955)
चक्रवाल (1956),कवि-श्री (1957)
सीपी और शंख (1957),नये सुभाषित (1957)
लोकप्रिय कवि दिनकर (1960),उर्वशी (1961)
परशुराम की प्रतीक्षा (1963),आत्मा की आँखें (1964)
कोयला और कवित्व (1964),मृत्ति-तिलक (1964) और
दिनकर की सूक्तियाँ (1964),हारे को हरिनाम (1970)
संचियता (1973), दिनकर के गीत (1973)
रश्मिलोक (1974),उर्वशी तथा अन्य शृंगारिक कविताएँ (1974)
गद्य
मिट्टी की ओर 1946,चित्तौड़ का साका 1948
अर्धनारीश्वर 1952,रेती के फूल 1954
हमारी सांस्कृतिक एकता 1955,भारत की सांस्कृतिक कहानी 1955
संस्कृति के चार अध्याय 1956,उजली आग 1956
देश-विदेश 1957,राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता 1955
काव्य की भूमिका 1958,पन्त-प्रसाद और मैथिलीशरण 1958
वेणुवन 1958,धर्म, नैतिकता और विज्ञान 1969
वट-पीपल 1961,लोकदेव नेहरू 1965
शुद्ध कविता की खोज 1966, साहित्य-मुखी 1968
राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी 1968,हे राम! 1968
संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ 1970,भारतीय एकता 1971
मेरी यात्राएँ 1971,दिनकर की डायरी 1973
चेतना की शिला 1973,विवाह की मुसीबतें 1973
आधुनिक बोध 1973
सुभद्रा कुमारी चौहान (16 अगस्त 1904-15 फरवरी 1948)
हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। इनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी (कविता) के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है।
कृतियाँ
कहानी संग्रह
बिखरे मोती (1932)
उन्मादिनी (1934)
सीधे साधे चित्र (1947)
कविता संग्रह
मुकुल
त्रिधारा
जीवनी
'मिला तेज से तेज'
द्विवेदी युग के अन्य महत्वपूर्ण कवि-
राय देवीप्रसाद पूर्ण,रामचरित उपाध्याय, गयाप्रसाद शुक्ल सनेही,माखनलाल चतुर्वेदी, सियाराम शरण गुप्त,बालकृष्ण शर्मा नवीन, जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद, सोहनलाल द्विवेदी, श्यामनारायण पाण्डेय, मुकुटधर पाण्डेय, सत्यनारायण कविरत्न आदि हैं।
द्विवेदीयुगीन काव्य प्रवृतियाँ-
राष्ट्रीयता की भावना:
भारतेन्दु युग की अपेक्षा द्विवेदी युग में देशप्रेम, अतीत गौरव,स्वदेशाभिमान की तीव्र अभिव्यक्ति मिलती है।
सामाजिक समस्याओं का चित्रण:
द्विवेदी युग के रचनाकारों की रचनाओं में जाति-पांति, वर्ग-वर्ण भेद की निंदा, छुआछूत का विरोध, धार्मिक-सामाजिक रुढियों व अंधविश्वासों की आलोचना आदि देखने को मिलता है।
इतिवृत्तात्मकता:
प्रबंध रचना की प्रवृत्ति है।खण्डकाव्य एवं महाकाव्य अधिक लिखे गए, मुक्तक रचना कम हुई।
अनूदित रचनाएं:
संस्कृत,बंगला, एवं अंग्रेजी की श्रेष्ठ रचनाओं के अनुवाद प्रस्तुत किये।
काव्यभाषा के रूप में खड़ी बोली का प्रयोग:
ब्रजभाषा के स्थान पर हिन्दी खड़ी बोली का प्रयोग काव्यभाषा के रूप में होने लगा।
द्विवेदी युग के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएं-
आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी (1864–1938) हिन्दी के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगप्रवर्तक थे। इन्होने हिंदी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की। इनके इस अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिंदी साहित्य का दूसरा युग 'द्विवेदी युग' (1900–1920) के नाम से जाना जाता है।इन्होंने सत्रह वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती का सम्पादन किया। हिन्दी नवजागरण में इनकी उल्लेखनीय भूमिका रही। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति व दिशा देने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा।द्विवेदी जी ने विपुल साहित्य रचना की। इनके छोटे-बड़े ग्रंथों की संख्या कुल मिलाकर ८१ है। पद्य के मौलिक-ग्रंथों में काव्य-ग्रन्थों में काव्य मंजूषा, कविता देवी-स्तुति, शतक आदि प्रमुख है। गंगालहरी, ॠतु तरंगिणी, कुमार संभव सार आदि इनके अनूदित पद्य-ग्रंथ हैं।गद्य के मौलिक ग्रंथों में तरुणोपदेश, नैषध चरित्र चर्चा, हिंदी कालिदास की समालोचना, नाटय शास्त्र, हिंदी भाषा की उत्पत्ति, कालीदास की निरंकुशता आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। अनुवादों में वेकन विचार, रत्नावली, हिंदी महाभारत, वेणी संहार आदि प्रमुख हैं। द्विवेदी जी की प्रमुख साहित्यिक रचनाएं निम्न है-
मौलिक पद्य रचनाएँ
देवी स्तुति-शतक (1892 ई.)
कान्यकुब्जावलीव्रतम (1898 ई.)
समाचार पत्र सम्पादन स्तवः (1898 ई.)
नागरी (1900 ई.)
कान्यकुब्ज-अबला-विलाप (1907 ई.)
काव्य मंजूषा (1903 ई.)
सुमन (1923 ई.)
द्विवेदी काव्य-माला (1940 ई.)
कविता कलाप (1909 ई.)
पद्य (अनूदित)
विनय विनोद (1889 ई.)- भर्तृहरि के 'वैराग्यशतक' का दोहों में अनुवाद
विहार वाटिका (1890 ई.)- गीत गोविन्द का भावानुवाद
स्नेह माला (1890 ई.)- भर्तृहरि के 'शृंगार शतक' का दोहों में अनुवाद
श्री महिम्न स्तोत्र (1891 ई.)- संस्कृत के 'महिम्न स्तोत्र' का संस्कृत वृत्तों में अनुवाद
गंगा लहरी (1891 ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ की 'गंगालहरी' का सवैयों में अनुवाद
ऋतुतरंगिणी (1891 ई.)- कालिदास के 'ऋतुसंहार' का छायानुवाद
सोहागरात (अप्रकाशित)- बाइरन के 'ब्राइडल नाइट' का छायानुवाद
कुमारसम्भवसार (1902 ई.)- कालिदास के 'कुमारसम्भवम्' के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश
मौलिक गद्य रचनाएँ
नैषध चरित्र चर्चा (1899 ई.)
तरुणोपदेश (अप्रकाशित)
हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना (1901 ई.)
वैज्ञानिक कोश (1906ई.),
नाट्यशास्त्र (1912ई.)
विक्रमांकदेवचरितचर्चा (1907ई.)
हिन्दी भाषा की उत्पत्ति (1907ई.)
सम्पत्ति-शास्त्र (1907ई.)
कौटिल्य कुठार (1907ई.)
कालिदास की निरकुंशता (1912ई.)
वनिता-विलाप (1918ई.)
औद्यागिकी (1920ई.)
रसज्ञ रंजन (1920ई.)
कालिदास और उनकी कविता (1920ई.)
सुकवि संकीर्तन (1924ई.)
अतीत स्मृति (1924ई.)
साहित्य सन्दर्भ (1928ई.)
अदभुत आलाप (1924ई.)
महिलामोद (1925ई.)
आध्यात्मिकी (1928ई.)
वैचित्र्य चित्रण (1926ई.)
साहित्यालाप (1926ई.)
विज्ञ विनोद (1926ई.)
कोविद कीर्तन (1928ई.)
विदेशी विद्वान (1928ई.)
प्राचीन चिह्न (1929ई.)
चरित चर्या (1930ई.)
पुरावृत्त (1933ई.)
दृश्य दर्शन (1928ई.)
आलोचनांजलि (1928ई.)
चरित्र चित्रण (1929ई.)
पुरातत्त्व प्रसंग (1929ई.)
साहित्य सीकर (1930ई.)
विज्ञान वार्ता (1930ई.)
वाग्विलास (1930ई.)
संकलन (1931ई.)
विचार-विमर्श (1931ई.)
गद्य (अनूदित)
भामिनी-विलास (1891ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ के 'भामिनी विलास' का अनुवाद
अमृत लहरी (1896ई.)- पण्डितराज जगन्नाथ के 'यमुना स्तोत्र' का भावानुवाद
बेकन-विचार-रत्नावली (1901ई.)- बेकन के प्रसिद्ध निबन्धों का अनुवाद
शिक्षा (1906ई.)- हर्बर्ट स्पेंसर के 'एजुकेशन' का अनुवाद
स्वाधीनता (1907ई.)- जॉन स्टुअर्ट मिल के 'ऑन लिबर्टी' का अनुवाद
जल चिकित्सा (1907ई.)- जर्मन लेखक लुई कोने की जर्मन पुस्तक के अंग्रेजी अनुवाद का अनुवाद
हिन्दी महाभारत (1908ई.)-'महाभारत' की कथा का हिन्दी रूपान्तर
रघुवंश (1912ई.)- कालिदास के 'रघुवंशम्' महाकाव्य का भाषानुवाद
वेणी-संहार (1913ई.)- संस्कृत कवि भट्टनारायण के 'वेणीसंहार' नाटक का अनुवाद
कुमार सम्भव (1915ई.)- कालिदास के 'कुमार सम्भव' का अनुवाद
मेघदूत (1917ई.)- कालिदास के 'मेघदूत' का अनुवाद
किरातार्जुनीय (1917ई.)- भारवि के 'किरातार्जुनीयम्' का अनुवाद
प्राचीन पण्डित और कवि (1918ई.)- अन्य भाषाओं के लेखों के आधार पर प्राचीन कवियों और पण्डितों का परिचय
आख्यायिका सप्तक (1927ई.)- अन्य भाषाओं की चुनी हुई सात आख्यायिकाओं का छायानुवाद।
श्रीधर पाठक (11 जनवरी 1858- 13 सितंबर 1928)
प्राकृतिक सौंदर्य, स्वदेश प्रेम तथा समाजसुधार की भावनाओ के हिन्दी कवि थे। वे प्रकृतिप्रेमी, सरल, उदार, नम्र, सहृदय, स्वच्छंद तथा विनोदी थे। वे हिंदी साहित्य सम्मेलन के पाँचवें अधिवेशन (1915, लखनऊ) के सभापति हुए और 'कविभूषण' की उपाधि से विभूषित भी हुए। हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी पर उनका समान अधिकार था।
इनकी रचनाये
मनोविनोद (भाग-1,2,3),
धन विनय (1900),
गुनवंत हेमंत (1900),
वनाष्टक (1912),
देहरादून (1915),
गोखले गुनाष्टक (1915)।
अन्य रचनाएँ हैं-
बाल भूगोल, जगत सचाई सार,
एकांतवासी योगी, काश्मीरसुषमा,
आराध्य शोकांजलि, जार्ज वंदना,
भक्ति विभा, श्री गोखले प्रशस्ति,
श्रीगोपिकागीत, भारतगीत,
तिलस्माती मुँदरी और
विभिन्न स्फुट निबंध तथा पत्रादि।
अनुवाद
श्रांत पथिक-"गोल्डस्मिथ के ट्रैवेलर का अनुवाद"
ऊजड़ग्राम(डेजर्टेज विलेज)
रामनरेश त्रिपाठी (4 मार्च, 1889 - 16 जनवरी, 1962)
कविता, कहानी, उपन्यास, जीवनी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी पर इन्होंने कलम चलाई। अपने 72 वर्ष के जीवन काल में इन्होंने लगभग सौ पुस्तकें लिखीं। ग्राम गीतों का संकलन करने वाले यह हिंदी के प्रथम कवि हैं जिसे 'कविता कौमुदी' के नाम से जाना जाता है। इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए उन्होंने गांव-गांव जाकर, रात-रात भर घरों के पिछवाड़े बैठकर सोहर और विवाह गीतों को सुना और चुना।
कृतियाँ
मिलन (1918) 13दिनों में रचित
पथिक (1920) 21 दिनों में रचित
मानसी (1927) और
स्वप्न (1929) 15दिनों में रचित इसके लिए इन्हें हिन्दुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला।
पं. रामनरेश त्रिपाठी जी की अन्य प्रमुख कृतियां -
मुक्तक -
मारवाड़ी मनोरंजन, आर्य संगीत शतक,
कविता-विनोद, क्या होम रूल लोगे, मानसी।
काव्य:
मिलन,
पथिक,
स्वप्न।
कहानी :
तरकस, आखों देखी कहानियां,
स्वपनों के चित्र, नखशिख,
उन बच्चों का क्या हुआ..?
21 अन्य कहानियाँ।
उपन्यास :
वीरांगना, वीरबाला,
मारवाड़ी और पिशाचनी,
सुभद्रा और लक्ष्मी।
नाटक :
जयंत, प्रेमलोक,
वफ़ाती चाचा,
अजनबी, पैसा परमेश्वर,
बा और बापू,
कन्या का तपोवन।
व्यंग्य :
दिमाग़ी ऐयाशी,
स्वप्नों के चित्र।
अनुवाद :
इतना तो जानो (अटलु तो जाग्जो - गुजराती से),
कौन जागता है (गुजराती नाटक)।
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947)
हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे।ये दो बार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं। प्रिय प्रवास हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है और इसे मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।
रचनाएँ
हरिऔध जी ने ठेठ हिंदी का ठाठ ,
अधखिला फूल ,
हिंदी भाषा और साहित्य का विकास
आदि ग्रंथों की भी रचना की,
किंतु मूलतः वे कवि ही थे उनके उल्लेखनीय ग्रंथ-
प्रिय प्रवास 1914 ई .
कवि सम्राट
वैदेही वनवास 1940 ई .
पारिजात 1937 ई .
रस-कलश 1940 ई .
चुभते चौपदे 1932 ई., चौखे चौपदे 1924 ई .
ठेठ हिंदी का ठाठ
अध खिला फूल
रुक्मिणी परिणय
हिंदी भाषा और साहित्य का विकास
बाल साहित्य
बाल विभव
बाल विलास
फूल पत्ते
चन्द्र खिलौना
खेल तमाशा
उपदेश कुसुम
बाल गीतावली
चाँद सितारे
पद्य प्रसून
जगन्नाथदास रत्नाकर (1866 - 21 जून 1932) आधुनिक युग के श्रेष्ठ ब्रजभाषा कवि थे।
रत्नाकर जी की रचनाएँ -
पद्य
हरिश्चंद्र (खंडकाव्य)
गंगावतरण 1923 (पुराख्यान काव्य),
उद्धवशतक (प्रबंध काव्य),
हिंडोला1894 (मुक्तक),
कलकाशी (मुक्तक)
समालोचनादर्श (पद्यनिबंध)
श्रृंगारलहरी, गंगालहरी,
विष्णुलहरी (मुक्तक),
रत्नाष्टक (मुक्तक),
वीराष्टक (मुक्तक),
प्रकीर्णक पद्यावली (मुक्तक संग्रह)।
गद्य
साहित्यिक लेख –
रोला छंद के लक्षण,
महाकवि बिहारीलाल की जीवनी,
बिहारी सतसई संबंधी साहित्य,
साहित्यिक ब्रजभाषा तथा उसके व्याकरण की सामग्री
बिहारी सतसई की टीकाएँ, बिहारी पर स्फुट लेख।
ऐतिहासिक लेख –
महाराज शिवाजी का एक नया पत्र,
शुगवंश का एक शिलालेख,
शुंग वंश का एक नया शिलालेख,
एक ऐतिहासिक पापाणाश्व की प्राप्ति,
एक प्राचीन मूर्ति, समुद्रगुप्त का पाषाणाश्व,
घनाक्षरी निय रत्नाकर, वर्ण, सवैया, छंद आदि।
संपादित रचनाएँ
सुधासागर (प्रथम भाग),
कविकुल कंठाभरण,
दीपप्रकाश, सुंदरश्रृंगार,
नृपशंमुकृत नखशिख,
हम्मीर हठ, रसिक विनोद,
समस्यापूर्ति (भाग 1), हिततरंगिणी,
केशवदासकृत नखशिख,
सुजानसागर,
बिहारी रत्नाकर, सूरसागर
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (3 अगस्त 1886 – 12 दिसम्बर 1964)
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। इनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी।सन 1954 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से गुप्त जी ने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है।'साकेत' इनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है।
कृतियाँ
महाकाव्य-
साकेत,
यशोधरा
खण्डकाव्य-
जयद्रथ वध, भारत-भारती,
पंचवटी, द्वापर,
सिद्धराज, नहुष,
अंजलि और अर्घ्य,
अजित, अर्जन और विसर्जन,
काबा और कर्बला, किसान,
कुणाल गीत, गुरु तेग बहादुर,
गुरुकुल , जय भारत,
युद्ध, झंकार , पृथ्वीपुत्र,
वक संहार , शकुंतला,
विश्व वेदना, राजा प्रजा,
विष्णुप्रिया, उर्मिला,
लीला , प्रदक्षिणा,
दिवोदास , भूमि-भाग
नाटक –
रंग में भंग , राजा-प्रजा,
वन वैभव , विकट भट ,
विरहिणी , वैतालिक,
शक्ति, सैरन्ध्री ,
स्वदेश संगीत, हिड़िम्बा ,
हिन्दू, चंद्रहास
मैथिलीशरण गुप्त ग्रन्थावली (मौलिक तथा अनूदित समग्र कृतियों का संकलन 12 खण्डों में,
काविताओं का संग्रह - उच्छवास
पत्रों का संग्रह - पत्रावली
रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974)
हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। ये आधुनिक युग के सर्व श्रेष्ठ वीर रस के कवि हैं।
काव्य
बारदोली-विजय संदेश (1928), प्रणभंग (1929)
रेणुका (1935), हुंकार (1938)
रसवन्ती (1939),द्वंद्वगीत (1940)
कुरूक्षेत्र (1946), धूप-छाँह (1947)
सामधेनी (1947), बापू (1947)
इतिहास के आँसू (1951),धूप और धुआँ (1951)
मिर्च का मज़ा (1951), रश्मिरथी (1952)
दिल्ली (1954),नीम के पत्ते (1954)
नील कुसुम (1955), सूरज का ब्याह (1955)
चक्रवाल (1956),कवि-श्री (1957)
सीपी और शंख (1957),नये सुभाषित (1957)
लोकप्रिय कवि दिनकर (1960),उर्वशी (1961)
परशुराम की प्रतीक्षा (1963),आत्मा की आँखें (1964)
कोयला और कवित्व (1964),मृत्ति-तिलक (1964) और
दिनकर की सूक्तियाँ (1964),हारे को हरिनाम (1970)
संचियता (1973), दिनकर के गीत (1973)
रश्मिलोक (1974),उर्वशी तथा अन्य शृंगारिक कविताएँ (1974)
गद्य
मिट्टी की ओर 1946,चित्तौड़ का साका 1948
अर्धनारीश्वर 1952,रेती के फूल 1954
हमारी सांस्कृतिक एकता 1955,भारत की सांस्कृतिक कहानी 1955
संस्कृति के चार अध्याय 1956,उजली आग 1956
देश-विदेश 1957,राष्ट्र-भाषा और राष्ट्रीय एकता 1955
काव्य की भूमिका 1958,पन्त-प्रसाद और मैथिलीशरण 1958
वेणुवन 1958,धर्म, नैतिकता और विज्ञान 1969
वट-पीपल 1961,लोकदेव नेहरू 1965
शुद्ध कविता की खोज 1966, साहित्य-मुखी 1968
राष्ट्रभाषा आंदोलन और गांधीजी 1968,हे राम! 1968
संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ 1970,भारतीय एकता 1971
मेरी यात्राएँ 1971,दिनकर की डायरी 1973
चेतना की शिला 1973,विवाह की मुसीबतें 1973
आधुनिक बोध 1973
सुभद्रा कुमारी चौहान (16 अगस्त 1904-15 फरवरी 1948)
हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। इनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी (कविता) के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी अनुभूतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है।
कृतियाँ
कहानी संग्रह
बिखरे मोती (1932)
उन्मादिनी (1934)
सीधे साधे चित्र (1947)
कविता संग्रह
मुकुल
त्रिधारा
जीवनी
'मिला तेज से तेज'
द्विवेदी युग के अन्य महत्वपूर्ण कवि-
राय देवीप्रसाद पूर्ण,रामचरित उपाध्याय, गयाप्रसाद शुक्ल सनेही,माखनलाल चतुर्वेदी, सियाराम शरण गुप्त,बालकृष्ण शर्मा नवीन, जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद, सोहनलाल द्विवेदी, श्यामनारायण पाण्डेय, मुकुटधर पाण्डेय, सत्यनारायण कविरत्न आदि हैं।
द्विवेदीयुगीन काव्य प्रवृतियाँ-
राष्ट्रीयता की भावना:
भारतेन्दु युग की अपेक्षा द्विवेदी युग में देशप्रेम, अतीत गौरव,स्वदेशाभिमान की तीव्र अभिव्यक्ति मिलती है।
सामाजिक समस्याओं का चित्रण:
द्विवेदी युग के रचनाकारों की रचनाओं में जाति-पांति, वर्ग-वर्ण भेद की निंदा, छुआछूत का विरोध, धार्मिक-सामाजिक रुढियों व अंधविश्वासों की आलोचना आदि देखने को मिलता है।
इतिवृत्तात्मकता:
प्रबंध रचना की प्रवृत्ति है।खण्डकाव्य एवं महाकाव्य अधिक लिखे गए, मुक्तक रचना कम हुई।
अनूदित रचनाएं:
संस्कृत,बंगला, एवं अंग्रेजी की श्रेष्ठ रचनाओं के अनुवाद प्रस्तुत किये।
काव्यभाषा के रूप में खड़ी बोली का प्रयोग:
ब्रजभाषा के स्थान पर हिन्दी खड़ी बोली का प्रयोग काव्यभाषा के रूप में होने लगा।