आधुनिक काल - साठोत्तरी एवं समकालीन कविता
Sixty and contemporary poetry
हिंदी में साठोत्तरी एवं समकालीन कविता
हिन्दी साहित्य के इतिहास में 1960ई. के बाद कि कविता को अनेक नाम दिए गए जिनमें प्रमुख है-
1. साठोत्तरी कविता
साठोत्तरी कविता 1960ई. बाद लिखी गयी असन्तोष, अस्वीकृति, विद्रोह को स्वर देने वाली कविता। यह उस मोहभंग को व्यक्त करती है जो स्वतंत्रता के बाद लोगों के हृदय में उत्पन्न हुआ।
2. समकालीन कविता
समकालीन कविता अपने युग व परिवेश से जुड़ी हुई है। यह हमारी आशा , आकांक्षा , राग-द्वेष , हर्ष-विषाद , सभी अपने में समाए हुए है।
3. अकविता
अकविता के प्रवर्तक श्याम परमार हैं। इसमें यथार्थ का चित्रण , प्रौढ़ मानसिकता एवं अंतर्विरोधों का अन्वेषण है।
4. युयुत्सुवादी कविता
युयुत्सुवादी कविता के प्रवर्तक शलभ श्रीराम सिंह हैं।
5. बीट कविता
बीट कविता के प्रवर्तक राजकमल चौधरी हैं। इसका जन्म अमेरिकी बिटनिक के प्रभाव से हुआ। यह उन्मुक्त यौन संबंधों की वकालत करती है।
6. अस्वीकृत कविता
अस्वीकृत कविता के प्रवर्तक श्रीराम शुक्ल हैं। इसका मानना है सत्य न कह पाने की विवशता कभी न कभी अवरोध तोड़कर बह निकलती है और तभी अस्वीकृत कविता का जन्म होता है।
7. सहज कविता
सहज कविता के प्रवर्तक रविन्द्र भ्रमर हैं।
इनके अलावा अभिनव कविता , अति कविता , निर्दिशायमी कविता आदि । इन अनेक नामों का एक ही अभिप्राय है कि साठोत्तरी कविता नई कविता से अलग है।
साठोत्तरी एवं समकालीन कविता की विशेषताएं
साठोत्तरी कविता में असंतोष , अस्वीकृति और विद्रोह का स्वर साफ तौर पर सुनाई देता है।
समकालीन कविता रोमानी छायावादी संस्कारों से मुक्त है।
समकालीन कविता जीवन से सीधा साक्षात्कार करती है।उसमें जीवन की खीझ , असन्तोष , निराशा , कुंठा , और कड़वाहट का स्वर है।
साठोत्तरी कविता समाज की मान्यताओं एवं परम्पराओं से मोहभंग प्रकट करती है।
साठोत्तरी कविता जीवन के उन अनुभूतियों को स्वर देती है जो जीवन की वास्तविकताओं से मन में उभरती है।
साठोत्तरी एवं समकालीन कविता के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएं
सुदामा पाण्डेय धूमिल
हिंदी की समकालीन कविता के दौर के मील के पत्थर धूमिल जी की कविताओं में आजादी के सपनों के मोहभंग की पीड़ा और आक्रोश की सबसे सशक्त अभिव्यक्ति मिलती है। व्यवस्था जिसने जनता को छला है, उसको आइना दिखाना मानों धूमिल की कविताओं का परम लक्ष्य है।
कृतियां
काव्य संग्रह
संसद से सड़क तक
कल सुनना मुझे
सुदामा पांडे का प्रजातंत्र
लोकप्रिय कविताएँ
मोचीराम,
बीस साल बाद,
पटकथा,
रोटी और संसद,
लोहे का स्वाद ।
इन्हें मरणोपरांत 1971 में 'कल सुनना मुझे' काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
लीलाधर जंगुड़ी
कृतियां
कविता संग्रह
शंखमुखी शिखरों पर,
नाटक जारी है,
इस यात्रा में,
रात अब भी मौजूद है,
बची हुई पृथ्वी,
घबराए हुए शब्द,
भय भी शक्ति देता है,
अनुभव के आकाश में चाँद,
महाकाव्य के बिना,
ईश्वर की अध्यक्षता में,
खबर का मुँह विज्ञापन से ढँका है
नाटक
पाँच बेटे
गद्य
मेरे साक्षात्कार
कैलाश वाजपेयी (11 नवंबर 1936 - 01 अप्रैल, 2015)
प्रमुख कृतियां
संक्रांत,
देहात से हटकर,
तीसरा अंधेरा,
सूफीनामा,
भविष्य घट रहा है,
हवा में हस्ताक्षर,
शब्द संसार' चुनी हुई कविताएँ 2004,
भीतर भी ईश्वर 2008
इन्हें कविता संग्रह ‘हवा में हस्ताक्षर’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था।
राजकमल चौधरी
प्रमुख कृतियां
उपन्यास
मछली मरी हुई
देहगाथा
नदी बहती थी
शहर था शहर नहीं था
अग्निस्नान
बीस रानियों के बाइस्कोप
एक अनार एक बीमार
ताश के पत्तों का शहर
कहानी संग्रह
सामुद्रिक और अन्य कहानियाँ
मछलीजाल
प्रतिनिधि कहानियाँ
कविता संग्रह
कंकावती
मुक्ति प्रसंग
इस अकालबेला में
विचित्रा
लक्ष्मीकांत वर्मा
प्रमुख कृतियां
खाली कुर्सी की आत्मा,
सफेद चेहरे,
तीसरा प्रसंग,
मुंशी रायजादा,
सीमान्त के बादल,
अपना-अपना जूता,
रोशनी एक नदी है,
धुएं की लकीरें,
तीसरा पक्ष,
कंचन मृग,
राख का स्तूप,
नीली झील का सपना,
नीम के फूल
शलभ श्रीराम सिंह
प्रमुख कृतियां
कल सुबह होने के पहले,
अतिरिक्त पुरुष,
त्रयी-२ में संकलित,
राहे-हयात,
निगाह-दर-निगाह,
नागरिकनामा,
अपराधी स्वयं,
पृथ्वी का प्रेम गीत,
ध्वंस का स्वर्ग,
उन हाथों से परिचित हूँ मैं,
चंद्रकांत देवताले
प्रमुख कृतियाँ
हड्डियों में छिपा ज्वर,
दीवारों पर खून से,
लकड़बग्घा हँस रहा है,
रोशनी के मैदान की तरफ़,
भूखंड तप रहा है,
हर चीज़ आग में बताई गई थी,
पत्थर की बैंच,
इतनी पत्थर रोशनी,
उजाड़ में संग्रहालय
मणि मधुकर
प्रमुख कृतियां
उपन्यास
सफेद मेमने,
सरकण्डे की सारंगी,
पत्तों की बिरादरी,
मेरी स्त्रियां
कहानी संग्रह
एकवचन बहुवचन,
हवा में अकेले,
भरत मुनि के बाद,
त्वमेव माता,
चुनिंदा चौदह
नाटक
रसगन्धर्व,
बुलबुल सराय,
दुलारी बाई,
खेला पोलमपुर,
हे बोधिवृक्ष,
इकतारे की आंख,
इलाइची बेगम
एकांकी संग्रह
सलवटों में संवाद
कविता संग्रह
खण्ड-खण्ड पाखण्ड पर्व,
घास का घराना,
बलराम के हजारों नाम,
पगफेरौ (राजस्थांनी)
रिपोर्ताज
सूखे सरोवर का भूगोल
बाल उपन्यास
सुपारीलाल
बालकाव्य
अनारदाना
जीवनी
ज्योर्जी दिमित्रोव
रघुवीर सहाय
प्रमुख कृतियां
दूसरा सप्तक,
सीढ़ियों पर धूप में,
आत्महत्या के विरुद्ध,
हँसो हँसो जल्दी हँसो (कविता संग्रह),
रास्ता इधर से है (कहानी संग्रह),
दिल्ली मेरा परदेश
लिखने का कारण(निबंध संग्रह)
साठोत्तरी एवं समकालीन हिन्दी कविता के अन्य महत्वपूर्ण कवियों में विश्वनाथ तिवारी , श्रीकांत वर्मा , दूधनाथ सिंह , वेणु गोपाल , मत्स्येन्द्र शुक्ल , विष्णु खरे , आलोक धन्वा , अमरजीत , अनिल जोशी , अज्ञेय , मुक्तिबोध , नागार्जुन आदि हैं।
साठोत्तरी एवं समकालीन हिन्दी कविता की प्रवृतियां
व्यवस्था विरोध
समकालीन कवियों में लगभग सभी व्यवस्था विरोधी है।परंतु इनके व्यवस्था विरोध दो उपधाराएँ हैं पहली सरकार की भूमिका को कारगर मानती है।ये व्यंग्य के कविता के द्वारा सरकार विरोधी चेतना जगाए रखते हैं
रोटी का सवाल उठाया जा रहा है
लोकसभा में लड़ा जा रहा है
रोटी का सवाल उलझ गया है
लोकसभा में सुलझाया जा रहा है।
विष्णुनागर
दूसरी उपधारा वामपंथियों की है जो हिंसा में विश्वास रखते हैं इसलिए इनकी कविता आक्रामक तेवर अपनाए हुए है।
नारी प्रेम
समकालीन कवियों ने स्त्री को माँ , बहन , पत्नी , प्रेमिका , और सृजक बनाकर स्थापित कर पुरुष के लिए नारी को अपरिहार्य बना दिया है। समकालीन कविता में गार्हस्थ्य जीवन की स्वस्थ छवि उभरती है।
तू मिसरी की डली बन जाओ मैं दूध बन जाता हूँ
तुम मुझमें घुल जाओ।
चंद्रकांत देवताले
जीवन धर्मिता
समकालीन कविता जीवन के किसी एक पक्ष या दृष्टिकोण से लगाव न रखकर जीवन के हर रंग रूप से लगाव रखती है।
खोलता हूं खिड़की और चारों ओर से दौड़ती है हवा
मानो इसी इंतजार में खड़ी थी पल्लव से सटकर
पूरे घर को जल भरी तशली सी हिलाती है।
सम्प्रदायवाद व जातिवाद का विरोध
हमारा देश 8वें 9वें दशक में हिंसक गतिविधियों से सुलगने लगा । जिनमें से अधिकतर का कारण जाती,सम्प्रदाय या अलगाववाद था । समकालीन कविता इन सबका विरोध करती है।
भाषा-शैली
इनकी भाषा सरल व शैली अलंकार विहीन है।मुक्त छन्द का प्रयोग हुआ है।आम आदमी की भाषा में काव्य सृजन हुआ है।बनावटीपन का सर्वथा अभाव है। नए उपमान , नए प्रतीक , और नए बिम्बों के प्रति इनका विशेष मोह है।
धूल की परत में हंसी क्या रख दी ?
सारे ब्रह्माण्ड को परेशान कर दिया।
इब्बार रब्बी