हिन्दी व्याकरण - क्रिया Verb
क्रिया
किसी शब्द या शब्द समूह द्वारा किसी कार्य के करने या होने का बोध होता है , उसे क्रिया कहते हैं ।जैसे –
राम भोजन कर रहा है ।
रमा गा रही है ।
सुरेश सो रहा है ।
बच्चा रो रहा है ।
मोहन खेल रहा है ।
उपर्युक्त वाक्यों में कर रहा है , गा रही है , सो रहा है , रो रहा है , खेल रहा है क्रियापद हैं । क्रिया के बिना कोई वाक्य पूर्ण नही होता । प्रत्येक वाक्य में क्रिया होना आवश्यक है । क्रिया के बिना वाक्यांश हो सकता है , पूर्ण वाक्य नही । क्रिया वाक्य को पूर्णता देती है ।
धातु
क्रिया का मूलरूप धातु कहलाता है ।जैसे – खा , पी , गा , जा , चल , लिख आदि ।
धातु के भेद
- मुलधातु
- यौगिक धातु
- मुलधातु
- यौगिक धातु
मुलधातु
ये स्वतंत्र होती हैं , इन्हें किसी भी सहायक शब्द की आवश्यकता नही होती ।जैसे – जा , चल , सक , सो , हंस आदि ।
यौगिक धातु
मूल धातु में प्रत्यय का योग करके , दो या दो से अधिक धातुओं के योग से या संज्ञा या विशेषण में प्रत्यय जुड़ने से बनी धातु को यौगिक धातु कहते हैं ।जैसे – खाना , जाना , चलना , उठना , बैठना
चलवाना , उठवाना , बैठाना , चलना-फिरना , उठना-बैठना , गाना-बजाना आदि ।
यौगिक धातु के भेद –
- प्रेरणार्थक धातु
- यौगिक धातु
- नाम धातु
- प्रेरणार्थक धातु
- यौगिक धातु
- नाम धातु
प्रेरणार्थक धातु
मुलधातु में आना व लाना जोड़ने पर प्रथम प्रेरणार्थक व वाना जोड़ने पर द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया रूप बनता है ।जैसे –
उठ + आना = उठाना , उठ +वाना = उठवाना ।
चल + आना = चलाना , चल + वाना = चलवाना ।
लिख + आना = लिखाना , लिख + वाना = लिखवाना ।
यौगिक धातु
दो या दो से अधिक धातुओं के योग से यौगिक क्रिया बनती है ।जैसे –
रोना - धोना , चलना - फिरना , खा - लेना , उठ - बैठना , उठ - जाना , खेलना - कूदना , आदि ।
नामधातु
संज्ञा या विशेषण से बनने वाली धातु को नाम धातु क्रिया कहते है ।जैसे -
गरियाना , लतियाना , बतियाना , गरमाना , चिकनाना , ठण्डाना ।
क्रिया का सामान्य रूप
किसी भी मूल धातु में ‘ना’ प्रत्यय लगाकर प्रयुक्त किये जाने वाले धातु-रूप को क्रिया का सामान्य रूप कहते हैं ।जैसे –
पढ़ना , लिखना ,खेलना , कूदना , जाना आदि ।
अर्थ के आधार पर क्रिया के भेद
अर्थ के आधार पर क्रिया के दो भेद हैं –
- सकर्मक क्रिया
- अकर्मक क्रिया
- सकर्मक क्रिया
- अकर्मक क्रिया
ये भी देखें
सकर्मक क्रिया
जिस क्रिया के कार्य का फल कर्ता को छोड़कर कर्म को प्राप्त हो , उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं ।इन क्रियाओं के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कर्म अवश्य होता है ।
जैसे –
राम आम खाता है ।
मोहन पत्र लिखता है ।
लता बाजार से सामान लाती है ।
सकर्मक क्रिया के भेद
- पूर्ण सकर्मक क्रिया
- अपूर्ण सकर्मक क्रिया
अपूर्ण सकर्मक क्रिया
जिस क्रिया के पूर्ण अर्थ का बोध कराने के लिए कर्ता के अतिरिक्त अन्य संज्ञा या विशेषण की आवश्यकता पड़ती है, उसे अपूर्ण सकर्मक क्रिया कहते हैं। अपूर्ण सकर्मक क्रिया का अर्थ पूर्ण करने के लिए संज्ञा या विशेषण को जोड़ा जाता है, उसे पूर्ति कहते हैं।जैसे -
‘राम हो गए ।‘ इस वाक्य में पूर्ण अर्थ का बोध नही हो रहा है । वहीं अब ‘राम मर्यादापुरुषोत्तम हो गए ।‘ अब पूर्ण अर्थ प्रकट हो रहा है । वाक्य में अभीष्ट अर्थ की प्राप्ति के लिए मर्यादापुरुषोत्तम जैसे विशेषण को जोड़ना पड़ा जिससे वाक्य का अर्थ स्पष्ट हो गया ।
पूर्ण सकर्मक क्रिया
जिस क्रिया के पूर्ण अर्थ का बोध स्वतः ही हो जाता है उसे पूर्ण सकर्मक क्रिया कहते हैं ।जैसे –
राम फुटबॉल खेलता है ।
राधा गाना गाती है ।
पूर्ण सकर्मक क्रिया के भी दो भेद होते हैं –
- एक कर्मक क्रिया
- द्विकर्मक क्रिया
एक कर्मक क्रिया
जिसमें एक ही कर्म हो , उसे एक कर्मक क्रिया कहते हैं ।जैसे -
मैं पुस्तक पड़ता हूँ ।
गीता खाना पकाती है ।
द्विकर्मक क्रिया
जिनमें दो कर्म हो उन्हें द्विकर्मक क्रिया कहते हैं ।प्रायः प्रेरणार्थक क्रियायें द्विकर्मक होती हैं । इनमें प्राणीवाचक कर्म गौण व अप्राणिवाचक प्रधान कर्म होता है ।
जैसे –
माँ बच्चे को दूध पिलाती है ।
राम से पुस्तक पढ़वाना ।
नोट :- वाक्य में यदि ‘क्या ?’ का उत्तर प्राप्त हो रहा हो तो प्रायः क्रिया सकर्मक होती है ।
अकर्मक क्रिया
जिस क्रिया में क्रिया व्यापार कर्ता करे व उसका फल भी करता को ही प्राप्त हो , उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं ।प्रायः इनमें कर्म का आभाव होता है ।
जैसे –
मोर नाचता है ।
सुरेश सोता है ।
माया हंसती है ।
अपूर्ण अकर्मक क्रिया
जिस अकर्मक क्रिया का पूरा आशय स्पष्ट करने के लिए वाक्य में कर्म के साथ अन्य संज्ञा या विशेषण का पूर्ति के रूप में प्रयोग होता है, उसे अपूर्ण अकर्मक क्रिया कहते हैं।जैसे -
‘राम हैं ।‘ वाक्य में ‘हैं’ एक अपूर्ण क्रिया हैं । इसे ‘राम दयालु हैं ।‘ लिखने पर वाक्य पूर्ण हो जाता है ।
संरचना की दृष्टि से क्रिया के भेद
संरचना की दृष्टि से क्रिया के दो भेद हैं
- रूढ़
- यौगिक
रूढ़ क्रिया
जिस क्रिया की रचना सीधे मूलधातु से होती है , उसे रूढ़ कहते हैं ।जैसे -
लिखना , पढ़ना , खाना , पीना आदि ।
यौगिक क्रिया
जिस क्रिया की संरचना एक से अधिक तत्वों से होती है , उसे यौगिक क्रिया कहते हैं ।जैसे –
लिखवाना , आते जाते रहना , पढ़वाना , बताना , बड़बड़ाना आदि ।
यौगिक क्रिया के भेद
- प्रेरणार्थक क्रिया
- संयुक्त क्रिया
- नामधातु क्रिया
- पूर्वकालिक क्रिया
- आज्ञार्थक या विधि क्रिया
- प्रेरणार्थक क्रिया
- संयुक्त क्रिया
- नामधातु क्रिया
- पूर्वकालिक क्रिया
- आज्ञार्थक या विधि क्रिया
संयुक्त क्रिया
जब दो या दो से अधिक क्रियाएँ मिलकर किसी पूर्ण क्रिया को बनाती हैं , तब वे संयुक्त क्रियाएँ कहलाती हैं ।संयुक्त क्रिया मुख्य तथा गौण क्रिया के योग से बनती है और अर्थ में विशेषता या नवीनता प्रकट करती है । इसलिए उसे रंजक क्रिया भी कहते हैं ।
जैसे –
वह पढ चुका है इस वाक्य में ' पढ़ना ' और ' चुकना दो क्रियाओं के मेल से एक पूर्ण क्रिया बनी है । पढ़ चुका है ' क्रियापद है ।
नामधातु क्रिया
जो नाम ( संज्ञा , विशेषण या सर्वनाम शब्द ) धातु के समान प्रयुक्त होते हैं , उन्हें नामधातु ' कहते हैं तथा नामधातुओं से जो क्रियाएँ बनती हैं , उन्हें नामधातु क्रिया कहते हैं ।जैसे -
हाथ - हथियाना ,
मोटा - मुटाना
अपना - अपनाना ।
उदाहरण - मनोरमा बहुत बतियाती है । यहाँ बतियाना ' धातु ' बात ' संज्ञा से बनी है ।
प्रेरणार्थक क्रिया
जिस क्रिया से यह पता चले कि कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे को उसके करने की प्रेरणा देता है , उसे ' प्रेरणार्थक क्रिया ' कहते हैं ।जैसे –
सीता गीता से पत्र लिखवाती है ।
इस वाक्य में सीता स्वयं पत्र न लिखकर गीता से पत्र लिखवाती है । अतः लिखवाना प्रेरणार्थक क्रिया है ।
पूर्वकालिक क्रिया
किसी क्रिया से पहले यदि कोई अन्य क्रिया आए , तो उसे पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं।अर्थात् जहाँ एक कार्य समाप्त होते ही दूसरा कार्य किया जाए । पूर्वकालिक क्रिया या तो क्रिया का मूल रूप होती है या उसके साथ कर ' या ' करके ' का प्रयोग होता है ।
जैसे –
वह खाना खाकर सो गया ।
बेटा , पाठ पढ़कर खेलो ।
उसने पढ़कर विश्राम किया ।
आज्ञार्थक या विधि क्रिया
जिस क्रिया से आज्ञा , अनुमति व प्रार्थना आदि का बोध होता है , उसे आज्ञार्थक या विधि क्रिया कहते हैं ।जैसे -
पुस्तक पढ़ो ।
पानी लाओ ।
खाना खाओ ।
बड़ों का सम्मान करो ।
उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद!
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