अर्थालंकार arthaalankaar
शब्द में निहित अर्थ को आधार बनाकर अलंकार अर्थात् अलंकृति जब शब्दों के अर्थ में होती है और एक शब्द के स्थान पर उसका दूसरा पयार्यवाची शब्द रखने पर उसका चमत्कार या सौन्दर्य नष्ट नहीं होता है तब अर्थालंकार होता है ।
उदाहरण
मुख मयंक सम मंजु मनोहर - मुख को चन्द्रमा के समान सुन्दर कहा गया हैं मयंक के स्थान पर शशि , चन्द्र लिखने से उपमा अलंकार नष्ट नहीं होता है ।
हरिमुख कमल विलोकिय सुन्दर - यहाँ मुख को कमल बताया गया है ।
अर्थालंकार के भेद
अर्थालंकार के मुख्यतः तीन भेद माने गये हैं –
सादृश्य मूलक अर्थालंकार
विरोध मूलक अर्थालंकार
अन्य संसर्ग मूलक अर्थालंकार
सादृश्य मूलक अर्थालंकार
इस अलंकार में दो वस्तुओं में विद्यमान समता या समानता को सामने रखकर कोई बात कही जाती है ।
सादृश्य मूलक अर्थालंकार में प्राय चार बाते पाई जाती है
उपमेय
उपमान
साधारण धर्म
वाचक शब्द
उपमेय
जो उपमा देने योग्य हो अर्थात् जिसको उपमा दी जाती है । जिसको किसी समान कहा जाता है ।
उपमान
जिसकी उपमा दी जाती है । अर्थात उपमेय का जिसके समान बताया
साधारण धर्म
उपमेय और उपमान दानों में समान रहने वाले गुण , क्रिया आदि धर्म को समान धर्म अथवा साधारण धर्म कहते हैं ।
वाचक शब्द
वह शब्द जिसके द्वारा उपमेय और उपमान में समानता बताई जाए ।
प्रमुख सादृश्य मूलक अर्थालंकार
उपमा रूपक उत्प्रेक्षा
दृष्टान्त उदाहरण अन्योक्ति
रूपकातिश्योक्ति प्रतीप भ्रांतिमान
सन्देह स्मरण अपहुति
व्यतिरेक निदर्शना समासोक्ति
विरोध मूलक अर्थालंकार
इनके आधार में विरोध ही होता है वस्तु - वस्तु विरोध , क्रिया - क्रिया विरोध , गुण - गुण विरोध , वस्तु गुण का विरोध , गुण क्रिया विरोध , वस्तु क्रिया विरोध , कारण कार्य विरोध व उद्देश्य कार्य विरोध आदि ।
प्रमुख विरोध मूलक अर्थालंकार
विरोधाभास असंगति विभावना
विशेषोक्ति विषम व्याघात
अल्प अधिक मानवीकरण
अन्य संसर्ग मूलक अर्थालंकार
शृंखलामूलक अलंकारों
एकावली कारणमाला मालादीपक सार
तर्क न्याय मूलक
काव्य लिंग अनुमान
काव्य न्यायमूलक
परिसंस्था यथा संख्या समुच्चय
लोक न्यायमूलक
तद्गुण एतद्गुण मीलित उन्मीलित सामान्य विशेषक
गूढार्थ प्रतीति मूलक
सूक्ष्म व्याजोक्ति
प्रमुख अर्थालंकार
उपमा
उपमा शब्द दो उप+मा से बना है जिसका अर्थ होता है उप – समीप , मा - मापना , तोलना अर्थात् - समीप रखकर दो पदार्थों का मिलान करना , तुलना करना ।
उदाहरण
मुख कमल सा खिल गया ।
मुख - उपमेय
कमल – उपमान
खिल गया - साधारण धर्म
सा - वाचक शब्द है ।
उपमा के भेद
पूर्णोपमा
लुप्तोतमा
पूर्णोपमा
जब पद में उपमा के चारों अंग मौजूदा रहते हैं तो पूर्णोपमा अलंकार होता है ।
उदाहरण
मुख चन्द्रमा जैसा सुन्दर है ।
राम लखन सीता सहित सोहत पर्ण निकेत ।
जिमि बस वासव अमरपुर , सची जयन्त समेत ।।
लुप्तोतमा
जब इन चारों अंगों में से कोई भी एक अंग नहीं रहता तब वहाँ लुप्तोतमा होती है । जो अंग लुप्त होता है उसको पहले रखकर लुप्तोतमा का पूरा नाम दिया जाता है उपमेय लुप्त होने पर उपमेय लुप्तोतमा , उपमान लुप्त होने पर उपमान लुप्तोतमा , साधारण धर्म लुप्त होने पर साधारण धर्म लुप्तोतमा , वाचक लुप्त होने पर वाचक लुप्तोतमा ।
उदाहरण
मुख चन्द्रमा जैसा है ।
कोटि कुलिस सम वचन तुम्हारा
मालोपमा
जहाँ एक उपमेय की अनेक उपमानों के साथ समानता का वर्णन किया जाता है । वहा मालोपमा अलंकार होता है ।
उदाहरण
मुख चन्द्र और कमल के समान है ।
हिरनी से , मीन से , सुखंजन समान चारु
अमल कमल से विलोचन हैं ये तुम्हारे ।
आँखों के ( उपमेय ) के लिए हिरनी , मीन , खंजन , कमल की उपमा दी गयी है अतः यहाँ मालोपमा अलंकार है ।
उपमेयोपमा
जब उपमेय और उपमान को एक दूसरे से उपमा दी जाए अर्थात् जब उपमेय को उपमान के समान बताकर फिर उपमान को उपमेय के समान बताया जाए तब वहाँ उपमेयोपमा अलंकार होता है ।
उदाहरण
कमल से नैन , अरु नैन से कमल है ।
राम के समान संभु , संभु सम राम है ।
रूपक अलंकार
जब एक वस्तु पर दूसरी वस्तु का आरोप किया जाए अर्थात् जब एक वस्तु को दूसरी वस्तु का रूप दिया जाए तो वहाँ रूपक अलंकार होता है ।
उदाहरण
उदित उदय गिरि मंच पर , रघुवर बाल मंतग ।
विकसे संत सरोज सब , हरषे लोचन मृग ।।
उपमेय - जनक के दरबार में रखा मंच , वहाँ पर उपस्थित राघव , संत एवं उनके लोचन - इन पर क्रमशः उदयगिरि , प्रातः कालीन सूर्य , कमल एवं भंवरों का आरोप कर दिया गया है । अर्थात् मंच रूपी उदयगिरि पर , रामरूपी सूर्य के प्रकट होते ही , संत रूपी कमल खिल उठे , एवं उनके नेत्र रूपी भ्रमर हर्षित हो गए । यह सांग रूपक अलंकार है ।
रूपक के भेद
सांग रूपक
निरंग रूपक
परम्परित रूपक
सांग रूपक
सांग रूपक ( स+अंग = अंगों सहित ) में उपमेय में उपमान का आरोप अवयवों ( अगों ) सहित होता है । जब उपमेय पर उपमान का आरोप किया जाए अर्थात् जब उपमेय को उपमान बनाया जाए और उपमान के अंग भी उपमेय बताए जाएं तब सांग रूपक होता है
उदाहरण
बीती विभावरी जागरी ।
अम्बर पनघट में डूबो रही , तारा घट उषा नागरी ।।
इस पद में अम्बर में पनघट का , तारों में घट का , उषा - नागरी का सम भेद रूप से आरोप किया गया है । उषा नागरी अंबर पनघट में तारा घट डूबो रही है ।
निरंग रूपक अलंकार
निरंग रूपक ( निः + अंग = अंगों से रहित ) जहाँ अवयवों ( अगों ) से हीन उपमान का उपमेय में आरोप किया जाए , वहाँ निरग रूपक अलकार होता है । जब केवल उपमान का आरोप उपमेय पर किया जाए अर्थात उपमेय को उपमान बनाया जाए पर उपमान के अगों को उपमेय के साथ न बताया जाए वहाँ निरंग रूपक अलकार होता है
उदाहरण
हरि मुख मृदुल मयंक
अवधेस के बालक चारि सदा
तुलसी मन मन्दिर में बिहरें ।
परम्परित रूपक
परम्परित रूपक में दो रूपक होते हैं । एक रूपक के द्वारा दूसरे रूपक की पुष्टि होती है । इसमें यदि पहला रूपक न हो तो दूसरे का निर्वाह ही नहीं हो पाता है ।
उदाहरण
जय जय गिरिराज किशोरी ।
जय महेश मुख चन्द्र चकोरी ।।
अभेद रूपक
जब उपमेय को उपमान का रूप दिया जाए और दोनों में कोई भेद न रखा जाए ।
उदाहरण
मुख चन्द्रमा है ।
तद्रूप रूपक
जब उपमेय को उपमान का रूप दिया जाए पर दोनों में कुछ भेद रखा जाए वहाँ तद्रूप रूपक होता है ।
उदाहरण
मुख दूसरा चन्द्रमा है ।
उत्प्रेक्षा अलंकार
जब उपमेय में उपमान से भिन्नता होते हुए भी सम्भावना व्यक्त की जाए अर्थात् एक वस्तु में दूसरी वस्तु की सम्भावना मात्र की गई हो वहाँ , उत्प्रेक्षा अलंकार होता है ।
उदाहरण
सोहत ओढ़े पीते पट , श्याम सलौने गात ।
मनहुँ नील मनि सैल पर , आतप पड्यो प्रभात ।।
नेत्र मानों कमल हैं ।
उत्प्रेक्षा अलंकार के भेद
वस्तुत्प्रेक्षा
हेतुत्प्रेक्षा
फलोत्प्रेक्षा ।
वस्तूप्रेक्षा
जहाँ एक वस्तु में दूसरी वस्तु की संभावना की जाए अर्थात् एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान ली जाए वहाँ वस्तुत्प्रेक्षा अलंकार होता है ।
पहचान - ज्यों , जानो , मानो , मनहूं , इव आदि वाचक शब्दों से होती है ।
उदाहरण
कण्ठ जब रुंधता है तब कुछ रोती हूं ।
होंगे गत जन्म के मैल उन्हें धोती हूं ।।
हरिमुख मानों मधुर मयंक
लता भवन ते प्रगट भये , तेहि अवसर दोउ भाई ।
हेतूत्प्रेक्षा
जहाँ पर अहेतु की हेतु के रूप में सम्भावना या कल्पना की जाती है वहाँ पर हेतुत्प्रेक्षा होती है । इसमें वस्तु का कार्य स्वाभाविक होता है किन्तु उसे कारण मान लिया जाता है ।
उदाहरण
सोवत सीता नाथ के , भृगु मुनि दीनी लात ।
भृगुकुल पति की गतिहरी , मनो सुमिरि वह बात ।।
मुख सम नहिं याते कमल मनु जल रह्यो छिपाय ।
फलोत्प्रेक्षा
जहाँ पर अफल में फल की सम्भावना की जाती है वहाँ फलोत्प्रेक्षा होती है । यहाँ फल का आशय उद्देश्य से है । जो फल नहीं होता उसको फल या उदेश्य जब मान लिया जाता है तब फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है ।
उदाहरण
तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये ।
झुके कूल सों जल परसन , हिल मनहुँ सुहाये ।।
तव मुख समता लहन को सेवत जलजात ।
अतिशयोक्ति अलंकार
अतिश्योक्ति ( अतिशय + उक्ति ) जहाँ किसी वस्तु या बात का वर्णन इतना बढ़ा - चढ़ा कर किया जाए कि लोक सीमा का उल्लंघन सा प्रतीत हो वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है ।
उदाहरण
तब शिव तीसरा नयन उधारा ।
चितवन काम भयेउ जरि छारा ।।
अतिशयोक्ति अलंकार के भेद
सम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार , असम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार , चपलातिशयोक्ति अलंकार , अक्रमातिशयोक्ति अलंकार , अत्यन्तातिशयोक्ति अलंकार , भेदकातिशयोक्ति अलंकार , रूप कातिशयोक्ति अलंकार
सम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार
जब दो वस्तुओं में कोई सम्बन्ध न होने पर भी संबंध बताया जाए तो वहाँ सम्बन्ध अतिश्योक्ति अलंकार होता है ।
उदाहरण
कोकन अति सब लोक ते , सुखप्रद राम प्रताप ।
बन्यो रहत जिन दम्पतिन , आठों पहर मिलाप ।।
असम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार
जब सम्बन्ध होने पर भी संबंध न बताया जाए तो वहाँ असम्बन्ध अतिश्योक्ति अलंकार होता है ।
उदाहरण
विधि हरिहर कवि कोविद वानी ।
कहत साधु महिमा सकुचानी ।।
चपलातिशयोक्ति अलंकार
जब कारण के होते ही तुरंत कार्य हो जाए तो वहाँ चपलातिश्योक्ति अलंकार होता है ।
उदाहरण
तब शिव तीसर नैन उधारा ।
चितवन काम भयउ जरि छारा ।।
अक्रमातिशयोक्ति अलंकार
जब कार्य और कारण एक साथ हो अर्थात् कारण के बाद ही कार्य घटित होता है किन्तु जब कारण के साथ ही कार्य होना वर्णित हो तो वहाँ अक्रमातिश्योक्ति अलंकार होता है ।
उदाहरण
बाणन के साथ छुटे प्राण दनुजन के ।
अत्यन्तातिशयोक्ति अलंकार
जब कारण के पहले ही कार्य हो जाए तो वहाँ अत्यन्तातिश्योक्ति अलंकार होता है ।
उदाहरण
शर खींच उसने तूण से कब किधर संधाना उन्हें ।
बस विद्ध होकर ही विपक्षी - वृन्द में जाना उन्हें ।।
भेदकातिशयोक्ति अलंकार
जब और ही निराला , न्यारा , आदि शब्दों से किसी की अत्यन्त प्रशंसा की जाए तो वहाँ भेदकातिश्योक्ति अलंकार होता है ।
उदाहरण
न्यारी रीति भूतल निहारी सिवराज की ।
रूपकातिशयोक्ति अलंकार
जब उपमेय का लोप करके केवल उपमान का ही कथन किया जाए और उसी से उपमेय का अर्थ लिया जाए तो वहाँ रूपकातिश्योक्ति अलंकार होता है ।
उदाहरण
पत्रा ही तिथि पाइये , वा घर के चहूँ पास ।
नित प्रति पून्योई रहत , आनन ओप उजास ।।
हनुमान की पूंछ में , लग न पाई आग ।
लंका सारी जरि गई , गए निसाचर भाग ।।
भ्रान्तिमान अलंकार
जब सादृश्य के कारण उपमेय में उपमान की भ्रान्ति हो जाए अर्थात् जब उपमेय को भूल से उपमान समझ लिया जाए तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है ।
उदाहरण
नाक का मोती अधर की कांति से ।
बीज दाडिम का समझकर भ्रांति से ।।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है ।
सोचता है अन्य शुक यह कौन है !!
सन्देह अलंकार
जहाँ रूप , रंग और गुण की समानता के कारण किसी वस्तु को देखकर यह निश्चित न हो कि यह वही वस्तु है , अर्थात् उपमेय में उपमान की अन्त तक शंका बनी रहे तो वहाँ सन्देह अलंकार होता है।
पहचान - कि , कैंधों , आदि अथवा जैसे वाचक शब्दों का प्रयोग से सहायता मिलती है ।
उदाहरण
सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है ।
सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है ।।
हरि मुख यह आली । किधौं उग्यो मयंक ?
दृष्टांत अलंकार
जब दो कथनों में बिम्ब - प्रतिबिम्ब भाव हों अर्थात् पहले एक बात कहकर फिर उससे मिलती - जुलती दूसरी बात कही जाती है अथवा उपमेय वाक्य की उपमान वाक्य से बिम्बात्मक समानता बताई जाए , वहाँ दृष्टांत अलंकार होता है
उदाहरण
सिव औरंगहि जिति सके , और न राजा राव ।
हत्थि मथ पर सिंह बिनु , आन न घालै घाव ।।
धन वाले घर में ही जाती , कभी न जाती निर्धन घर में ।
जल निधि में गंगा गिरती है , कभी न गिरती सूखे सर में ।।
कन कन जोरे मन जुरै , खावत निबरै सोय ।
बूंद बूंद ते घट भरै , टपकत रीतो होय ।।
उदाहरण अलंकार
किसी बात को कहकर उसके स्पष्टीकरण हेतु कोई जग प्रसिद्ध उदाहरण दिया जाता है तो वहाँ उदाहरण अलंकार होता है ।
पहचान - दृष्टान्त अलंकार में जैसे जिमि , ज्यों , इव आदि वाचक शब्दों का प्रयोग नहीं होता जब कि उदाहरण में होता है ।
उदाहरण
जो रहीम गति दीप की , कुल कपूत गति सोय ।
बारे उजियारों करे , बढे अधेरो होय ।।
ज्यों रहीम जस होत है , उपकारी के संग ।
बाँटन वारे को लगै ज्यों मिहन्दी के रंग ।।
अर्थान्तरन्यास अलंकार
जहाँ सामान्य का विशेष से अथवा विशेष का सामान्य से समर्थन किया जाए वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है।
उदाहरण
जाहि मिले सुख होत है , तिहि बिछुरे दुख होई ।
सूर उदय फूलै कमल , ता बिनु सकुचै सोई ।।
व्याजस्तुति अलंकार
व्याज का शाब्दिक अर्थ होता है बहाना । अतः निन्दा या स्तुति के बहाने विपरीत जन अभीष्ट हो वहाँ व्याजस्तुति अलकार होता है ।
उदाहरण
यमुना तू अविवेकिनी , कौन तिहारो ढंग ?
पापिन ते निज बन्धु कौ , मान करावत भंग ।।
राम साधु तुम्ह साधु सयाने ।
राम मातु भलि सब पहिचाने ।।
प्रतीप अलंकार
जहाँ पर प्रसिद्ध उपमान को उपमेय अथवा उपमेय को उपमान सिद्ध करके उपमेय की उत्कृष्टता वर्णित की जाती है वहाँ प्रतीप अलंकार होता है । प्रतीप का आशय है - उलटा या विपरीत अर्थात् उपमेय के सम्मुख उपमान का तिरस्कार किया जाता है वहाँ प्रतीप अलंकार होता है । इसे निम्न प्रकार से अभिव्यक्त किया जाता है –
- उपमेय को उपमान और उपमान को उपमेय बनाकर
काहे करत गुमान मुख , मुख , सम मंजु
- उपमान को उपमेय की उपमा के अयोग्य बताकर
का सरबरि तेहि देऊ मयंक ?
- उपमान को उपमेय के समक्ष अनावश्यक बताकर
करै प्रकाश प्रताप तब , कहा भानु को काज ?
- प्रत्यक्ष रूप से
काहे करत गुमान ससि । तव समान मुख मंजु !
व्यतिरेक अलंकार
जहाँ गुणाधिक्य के कारण उपमान की तुलना में उपमेय का उत्कर्ष वर्णित होता है . वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है । व्यतिरेक का अर्थ होता है- उत्कर्ष या आधिक्य अर्थात् जब उपमेय में उपमान की अपेक्षा कोई भली या बुरी बात अधिक बताई जाए , उपमेय को किसी बात में बढ़ाकर बताया जाय वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है ।
उदाहरण
साधू ऊँचै शैल सम , किन्तु प्रकृति सुकुमार ।
जन्म सिन्धु पुनि बंधु विषय , दिन मलीन सकलंक ।
सिय मुख समता पाव किमि , चंद बापुरो रंक ।।
विरोधाभास अलंकार
वास्तविका विरोध न होते हुए भी जहाँ विरोध की प्रतीति हो वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है । विरोधाभास शब्द का अर्थ है - विरोध का आभास देने वाला ।
उदाहरण
या अनुरागी चित्त की , गति समझे नहिं कोय ।
ज्यौं ज्यौं बूडै श्याम रंग , त्यौं त्यौं उज्ज्वल होय ।।
विषमय यह गोदावरी , अमृतन के फल देत ।
विभावना अलंकार
जहाँ कारण के अभाव में ही कार्य की सम्पन्नता का वर्णन किया गया हो वहाँ विभावना अलंकार होता है ।
यह अलंकार दो प्रकार का होता है –
शाब्दी विभावना
आर्थी विभावना
शाब्दी विभावना
शाब्दी विभावना से तात्पर्य है कि कारण के अभाव का शब्द के द्वारा कथन
निन्दक नियरे राखिये , आंगन कुटी छवाय ।
बिन पानी साबुन बिना , निर्मल करै सुभाय ।।
आर्थी विभावना
आर्थी विभावना से तात्पर्य कारण का अभाव शब्दों के द्वारा कथित नहीं होता है ।
बिनु पद चलै बिनु काना ।
कर बिनु कर्म करैं विधि नाना ।।
स्वभावोक्ति अलंकार
जब किसी वस्तु के स्वभाव का यथा तथ्यपूर्ण वर्णन किया जाए तब वहाँ स्वभावोक्ति अलंकार होता है । यथा तथ्यपूर्ण अर्थात् जैसा है वैसा ही , बिना कुछ बढ़ाये घटाये ।
उदाहरण
भोजन करत चपत चित्त इत उत अवसर पाय ।
भाजि चले किलकात मुख दधि औदन लपटाय ।।
असंगति अलंकार
जहाँ कारण अन्यत्र हो , और कार्य कहीं अन्यत्र , वहाँ असंगति अलंकार होता है । असंगति का शब्दार्थ है- संगति का न होना । संगति तभी होती है जब कारण और कार्य एक ही स्थान पर घटित होते हैं किन्तु असंगति में एक ही समय में कारण एक स्थान पर तथा कार्य अन्यत्र पर घटित होता वर्णित किया जाता है ।
उदाहरण
सितहिं लै दसकंध गयो
पै गयो है विचारो समुंदर बांध्यो।
दीपक अलंकार
जहाँ प्रस्तुत ( उपमेय ) और अप्रस्तुत ( उपमान ) को एक ही धर्म में अन्वित किया जाय वहाँ दीपक अलंकार होता है । अर्थात् जहाँ प्रस्तुत और अप्रस्तुत दोनों का एक ही धर्म कहा जाए , वहाँ दीपक अलंकार समझना चाहिए ।
उदाहरण
भूपति सोहत दान सों , फल फूलन उद्यान ।
दीपक अलंकार के भेद
कारण दीपक अलंकार
इस अलंकार में अनेक क्रियाओं का एक ही कर्ता माना जाता है ।
उदाहरण
कहत नटत रीझत खिजत , मिलत खिलत लजियात ।
भरे भौन में करत हैं , नैनन ह्वैं सौं बात ' ।।
माला दीपक अलंकार
जहाँ पूर्व कथित वस्तुओं से उत्तरोत्तर कथित वस्तुओं का एक धर्म से संबंध होना स्वीकृत हो , वहाँ माला दीपक अलंकार होता है ।
उदाहरण
सेवक सठ नृप कृपण कुनारी ।
कपटी मित्र सूल सम चारी ।।
समासोक्ति अलंकार
समासोक्ति का अर्थ है- संक्षिप्त कथन ।
जहाँ संक्षिप्त उक्ति में कुछ ऐसे विशेषणों का प्रयोग किया जाता है कि प्रस्तुत के वर्णन में अप्रस्तुत का भी ज्ञान हो , वहाँ पर समासोक्ति अलंकार होता है । अर्थात् प्रस्तुत के माध्यम से अप्रस्तुत की व्यजना की जाती है ।
उदाहरण
लोचन मग रामहिं उर आनी ।
दीन्हें पलक कपाट सयानी ।।
अन्योक्ति या अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार
जहाँ अप्रस्तुत उपमान के द्वारा प्रस्तुत उपमेय का बोध कराया जाए वहाँ अन्योक्ति या अप्रस्तुत प्रशंसा अलंकार होता है ।
उदाहरण
नहिं पराग , नहिं मधुर मधु , नहिं विकास इहि काल ।
अली कली ही सौं बिध्यो , आगे कौन हवाल ।।
माली आवत देखकर कलियन करी पुकारि ।
फूले - फूले चुन लिये , काल्हि हमारी बारि ।।
रहिमन धागा प्रेम का , मत तोड़ों चिटकाय ।
टूटे से फिर ना मिले , मिले गांठ पडि जाय ।।
मानवीकरण अलंकार
जहाँ पर अमूर्त भावों का मूर्तीकरण कर और जड़ पदार्थों का चेतनवत् वर्णन किया जाता है वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है । मानवीकरण अलंकार का प्रयोग जड़ का चैतन्यीकरण , अमूर्त भावना का मूर्तिकरण , चेतन का मानवीकरण के रूप में होता ।
उदाहरण
चुपचाप खड़ी थी वृक्ष पात ।
सुनती जैसी कुछ निजी बात ।।
उत्साहवर्धन के लिये धन्यवाद!
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