घनानन्द कवित्त Ghanananda Kavitt

घनानन्द कवित्त
Ghanananda Kavitt
(सं.विश्वनाथप्रसाद मिश्र )

घनानन्द कवित्त Ghanananda Kavitt (सं.विश्वनाथप्रसाद मिश्र )

घनानन्द रीतिकाल की तीन प्रमुख काव्यधाराओं- रीतिबद्ध, रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त के अंतिम काव्यधारा के अग्रणी कवि हैं। घनानन्द के मर्मी अध्येता और ' घनानन्द ग्रंथावली के संपादक आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने घनानन्द की अनुमानित जन्म तिथि सं . 1730 वि . और मृत्यु सं . 1817 विक्रमी निर्धारित की है धनानंद , आनंदघन और आनंद के विवाद को देखते हुए लगता है कि इस नाम के कई कवि हुए है इन पर विस्तार से विचार करते हुए आचार्य मिश्र ने धनानंद की प्रामाणिक रचनाओं का संग्रह ' घनानंद ग्रंथावली में किया है

एक किंवदन्ती के अनुसार घनानंद मुहम्मद शाह रंगीले के दरबारी थे वहां एक कवि के रूप में नहीं , वरन एक कर्मचारी के रूप में वे रहते थे वे दरबार में एक मीर मुंशी या वजीर थे- इस विषय में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता राजदरबार में वे अपनी कवित्व शक्ति के लिए नहीं , वरन् संगीत - निपुणता के लिए प्रसिद्ध थे बादशाह की कृपा और सुजान नामक रूपवती दरबारी वेश्या से प्रेम के कारण घनानंद कुछ दरबारियों के द्वेष के शिकार बने षड़यंत्र की भावना से प्रेरित दरबारियों ने बादशाह को बताया कि घनानंद बहुत अच्छा गाते है दरबारियों को मालूम था कि वे अपनी संगीत कला को दरबारी नही बनाना चाहते अत : बादशाह के अनुरोध पर भी उन्होंने गाया नहीं | जब दरबारियों ने बताया कि सुजान के अनुरोध पर वे अवश्य गायेंगे तो उन्हें दरबार में बुलाया गया उनके अनुरोध पर गाते हुए वे इतने तन्मय हो गए कि जब गीत समाप्त हुआ तो उनका मुख सुजान की ओर और पीठ बादशाह की ओर हो गयी इस अशिष्टता के लिए उन्हें राजदरबार से निकाल दिया गया निकाले जाने पर जब इन्होंने सुजान को भी साथ चलने को कहा तो उसने इनकार कर दिया राजदरबार से निष्कासन और सुजान की उपेक्षा के बाद ही इन्होंने कवि के रूप में ख्याति प्राप्त की इससे स्पष्ट है कि इनकी कविता वियोग जनित है यहाँ यह विशेष रूप से ध्यान देने की बात है कि घनानंद अपने समय के काफी विवादास्पद व्यक्ति रहे हैं जहां एक ओर उनके व्रजनाथ , हितवृन्दावनदास आदि जैसे बहुत सारे प्रशंसक रहे है , वहीं दरबारियों के साथ ही हिन्दू समाज के कर्णधारों की निन्दा के पात्र भी वे बने है इनकी निन्दा के रूप में ' यस कवित्त ' शीर्षक से एक अडीवा मिला है , जिसमें इनके जीवन के बहुत सारे तथ्य प्रस्तुत हुए हैं | कायस्थ परिवार में जन्म लेकर ' तरकिनी का बन्दा ' बनना , दूसरों की वाणी का चोर और अनेक समाज विरोधी काम करने वाला बता कर इस निन्दापरक रचना ने कवि के जीवन के अनेक प्रामाणिक तथ्य भी उपस्थित किए हैं , जिसका एक उदाहरण हैं

" इफरी बजावै डोम डाड़ी सम गावै ,
काहू तुरको रिझावै तब पावै झूठो नाम है
हुरकिनी सुजान तुरकिनी को सेवक है ,
तजि रामनाथ वाको पूजै काम - धाम है "

इस भड़ौवे के रचयिता ने घनानन्द की निन्दा के बहाने बहुतसे प्रामाणिक तथ्य हमारे सामने प्रस्तुत कर दिए है सुजान नामक मुसलमान वेश्या से प्रेम , कायस्थ कुल में जन्म , मुसलमान का दरबारी होना , दूसरों की वाणी चुरा कर कविता करना , ब्रजभूमि में कहीं बाहर से आकर बसना , भक्ति का नाटक करना आदि ऐसे उल्लेख हैं , जो घनानंद के जीवन - वृत्त को प्रकाशित करते हैं

आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने ' घनानंद ग्रंथावली की भूमिका में इनकी सुजान हित , कृपाकंद , वियोग वेलि , इश्कलता आदि चालीस छोटी - बड़ी रचनाओं का उल्लेख किया है इनके माध्यम से भाषा वैविध्य के साथ ही विषय वैविध्य भी हमारे सामने आता है | बहुत - सी रचनाओं में पूर्वी हिन्दी , अवधी , पंजाबी , राजस्थानी आदि के साथ ही अरबी फारसी मिश्रित भाषा का भी प्रयोग मिलता है लेकिन घनानंद के समसामयिक और उनकी कविता के प्रशंसक ब्रजनाथ द्वारा अत्यन्त श्रम से तैयार किया गया ' घनानंद कवित्त ' सबसे प्राचीन ग्रंथ है जिसमें 500 कवित्त सवैए हैं यही इनकी कीर्ति का प्रमुख स्तंभ है , जिसे आचार्य विश्वनाथ प्रसाद ने मिश्र ने ' घनानंद कवित्त ' शीर्षक से प्रकाशित किया है

यहाँ परीक्षार्थियों व सुधि पाठकों हेतु आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र द्वारा प्रकाशित ‘घनानन्द कवित्त’ को यथावत आपके सामने रखा गया ।


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